जिला बांदा, गांव बडोखर बुजुर्ग, सितम्बर-अक्टूबर 2016। बडोखर बुजर्ग गांव में रहनेवाले रतिराम की मौत 20 सितंबर 2016 को हो गई। रतिराम ने मरने से पहले डीएम को एक खत लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की थी। उनके परिवार के पांच सदस्यों को कैंसर, दमा, विकलांगता जैसी बीमारियां थीं। आज परिवार के जिंदा बचे हुए सदस्यों का प्रशासन से पूरा विश्वास ही उठ गया है।
बडोखर बुजर्ग गांव में रहनेवाले रतिराम, उम्र 45, को खुद भी कैंसर की बीमारी थी, जिसके चलते उसकी हुई। 3 अक्टूबर को रतिराम की मां कलावती, उम्र 60, चल बसीं। मरने से पहले 29 जून 2016 में रतिराम ने इच्छा मृत्यु की मांग अपनी मंदी हालत को देखकर की थी, पर प्रशासन ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
रतिराम की पत्नी ललिता, उम्र 29, बताती हैं, “मेरे घर में अब कोई नौकरी करने वाला नहीं है। एक विकलांग देवर है और दूसरे मेरे बूढ़े ससुर हैं।”
रतिराम के पिता माहेश्वरी दीन को दमा और बहरेपन की बीमारी है जबकि भाई राम सिंह,30, को विकलांगता है और रतिराम की पत्नी ललिता भी हमेशा बीमार रहती हैं। रतिराम के बच्चे अमित, उम्र 15, भोला, उम्र 12 और राहुल, उम्र 8 हैं। ये तीनों ही बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं क्योंकि ललिता के लिए इनका पेट भरना ही मुश्किल हो रहा है। रतिराम की मां कलावती को दमे की बीमारी थी। रतिराम की पत्नी ललिता ने अपने पति का इलाज और अंतिम संस्कार उधार का पैसा लेकर किया है, ये पैसे उसके बच्चे बड़े होकर देंगे क्योंकि अभी तो उनके हालात ऐसी नहीं हैं कि वे पैसों को चुका सकें।
रतिराम की बहन कहती हैं, “मुझे तो अब अपनी भाभी और बच्चों की फ्रिक होती है। भाई के इलाज में हमने अपनी सारी गाय, भैसों को बेचकर सारी सम्पत्ति लगा दी। अब एक भैंस है, जिसका चारा भी पूरा नहीं हो रहा है। अगर भाई होता तो मजदूरी करके ही उनका पेट भर लेता।”
रतिराम के भाई राम सिंह, उम्र 38, कहते हैं, “मां के मरने की वजह भाई की मौत का गम था।” राम सिंह गुस्से में भाई की लाश के अंतिम संस्कार के लिए भी कुछ नहीं करने की बात कहते हुए प्रशासन से कोई उम्मीद नहीं रखने की बात कहते हैं। “प्रशासन उनके लिए कुछ नहीं करेगा।” उनका मनना है कि प्रशासन उनकी ही मदद करता है, जिसके पास पैसा हो। “अगर पैसा नहीं हो तो प्रशासन आपकी मदद नहीं करेगा, चाहे आप मर ही क्यों नहीं जाएं।”
जिलाधिकारी योगेश कुमार ने रतिराम से उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था जून 2016 से करने को कहा था। उन्होंने रतिराम से लोहिया आवास और अंत्योदय राशन कार्ड लेने की बात कही थी पर आज तक उन्हें ऐसा कुछ भी नहीं मिला है।
डीएम ने रतिराम के बच्चों की पढ़ाई के लिए छह हजार रुपये प्रति बच्चे के लिए देने की बात कही थी, पर उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं दिया और रतिराम के बच्चे उनकी मदद से स्कूल जाने का इंतेजार कर रहे हैं। ललिता आज भी प्रशासन से मदद की उम्मीद करती हैं। मदद मिलेगी भी या नहीं – ये कोई नहीं जानता।
रिपोर्टर- गीता देवी और मीरा देवी
15/10/2016 को प्रकाशित