जिला बांद, शहर बांदा सावले प्रसाद महात्मा गांधी के साथै देश के आजादी के खातिर कंधे से कंधा मिला के अंग्रेजन से लड़ाई करिन रहैं। आज भी जबै उनसे या जानै खातिर खबर लहरिया पत्रकार बात करिन तौ उनके वा दिन फेर से ताजा होइगे।
सावले प्रसाद का कहब है कि जबै मोर उम्र उन्नीस साल के रहैं तबै मैं गांधी जी का देखे रहौं। एक दिन मैं घर से बाहर निकरंेव तौ देखा कि लड़कन के भीड़ लाग रहै। गांधी जी के साथै चलै खातिर कागज मा लड़कन से दखसत करवाये जात रहैं। कइयौ लड़का दसखत तौ कइ दिहिन,पै कउनौ नहीं गे रहैं, पै मैं गांधी जी के साथै चला गयेव रहौं। उनके साथै जाये के बाद मोहिका जेल जाये का परा। वा समय मोहिका राजनीति के बारे मा कुछौ नहीं पता रहै कि राजनीति का चीज होत है। हुंवा जाये के बाद पता लाग कि राजनीति केहिका कहा जात है।
सावले प्रसाद या भी कहिन कि बांदा के बबेरू ब्लाक के स्कूल मा मोर शुरुवात के पढ़ाई भे। यहिके बाद 1939 मा मैं वकालत के पढ़ाई कीनेव। जबै मड़ई कांग्रेस का झंडा निकारत रहैं। मैं भी वहिमा शामिल होई गयेंव। वा समय महोर्रर्म अउर हिन्दू के त्यौहार एकै साथै परे रहैं। यहिसे दफा एक सौ चालिस लाग रहै। 1940 मा मैं तिरंगा उठायेंव अउर गांधी जी के साथै चल परेंव। मैं तीन महीना सुल्तानपुर अउर दुई साल बंादा के जेल मा बंद रहे हौं। 1942 मा मोर वारंट होइगा। यहिसे मोहिका राजनीति के बारे मा बहुतै जानकारी मिली अउर गांधी जी के साथ काम करै मा खूबै मजा भी आई। हमार भारत देश के आजादी का पूर सत्तर साल होइगे हैं। इं सत्तर साल कसत बीत गें कउनौ पता नहीं लाग। अगर हमार देश के महात्मा गांधी अंग्रेजन से लड़ाई ना लड़त तौ आज भी हमार देश के मड़ई अंग्रेजन के गुलामी करत रहत।
सावले प्रसाद का कहब है कि जबै मोर उम्र उन्नीस साल के रहैं तबै मैं गांधी जी का देखे रहौं। एक दिन मैं घर से बाहर निकरंेव तौ देखा कि लड़कन के भीड़ लाग रहै। गांधी जी के साथै चलै खातिर कागज मा लड़कन से दखसत करवाये जात रहैं। कइयौ लड़का दसखत तौ कइ दिहिन,पै कउनौ नहीं गे रहैं, पै मैं गांधी जी के साथै चला गयेव रहौं। उनके साथै जाये के बाद मोहिका जेल जाये का परा। वा समय मोहिका राजनीति के बारे मा कुछौ नहीं पता रहै कि राजनीति का चीज होत है। हुंवा जाये के बाद पता लाग कि राजनीति केहिका कहा जात है।
सावले प्रसाद या भी कहिन कि बांदा के बबेरू ब्लाक के स्कूल मा मोर शुरुवात के पढ़ाई भे। यहिके बाद 1939 मा मैं वकालत के पढ़ाई कीनेव। जबै मड़ई कांग्रेस का झंडा निकारत रहैं। मैं भी वहिमा शामिल होई गयेंव। वा समय महोर्रर्म अउर हिन्दू के त्यौहार एकै साथै परे रहैं। यहिसे दफा एक सौ चालिस लाग रहै। 1940 मा मैं तिरंगा उठायेंव अउर गांधी जी के साथै चल परेंव। मैं तीन महीना सुल्तानपुर अउर दुई साल बंादा के जेल मा बंद रहे हौं। 1942 मा मोर वारंट होइगा। यहिसे मोहिका राजनीति के बारे मा बहुतै जानकारी मिली अउर गांधी जी के साथ काम करै मा खूबै मजा भी आई। हमार भारत देश के आजादी का पूर सत्तर साल होइगे हैं। इं सत्तर साल कसत बीत गें कउनौ पता नहीं लाग। अगर हमार देश के महात्मा गांधी अंग्रेजन से लड़ाई ना लड़त तौ आज भी हमार देश के मड़ई अंग्रेजन के गुलामी करत रहत।
रिपोर्टर- मीरा देवी
11/08/2016 को प्रकाशित
गांधी जी से प्रभावित होकर तिरंगा उठाया और ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाया
बाँदा के स्वतंत्रता सेनानी सावले प्रसाद को इसके लिए जेल जाना पड़ा