पिछले रविवार 20 आदमियों की भीड़ स्क्रॉल.इन की पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम के घर के सामने जमा हो गई। उन्होंने उनकी कार पर पत्थर मारे और पीछे का शीशा तोड़ दिया। वे नारे लगा रहे थे ‘नक्सली समर्थक बस्तर छोड़ो। मालिनी सुब्रमण्यम मुर्दाबाद‘।
इस भीड़ ने आम जनता को भी भड़काने की कोशिश की और उन्हें भी पत्थर फेकने को उकसाया। कहा कि वो माओवादियों को हथियार पहुंचाती हैं और उनके घरों में भी बम रख सकती हैं।
सोमवार को छत्तीसगढ़ पुलिस ने एफआईआर लिखने से मना कर दिया। पुलिस खुद सुब्रमण्यम को देर रात घर जाकर परेशान करती रहती है और उनसे तरह-तरह के सवाल पूछती रहती है।
पिछले एक महीने से सुब्रमण्यम को, जिनकी रिपोर्टिंग मानव अधिकार उलंघनों पर केंद्रित रहती है, पुलिस और एक स्थानीय समूह द्वारा डराया जा रहा है।
सुब्रमण्यम एक अकेली पत्रकार नहीं हैं जिन्हें बस्तर में पुलिस द्वारा परेशान किया जा रहा है। पिछले साल दो पत्रकार, संतोष यादव और सोमारू नाग को माओवादियों को मदद करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया। दिसंबर में सैकड़ों पत्रकारों ने इन गिरफ्तारियों के विरोध में रायपुर में रैली की और सरकार से सुरक्षा की मांग की।
सुब्रमण्यम को परेशान किया जाना उन पत्रकारों और वकीलों पर कार्यवाही का एक हिस्सा है जो पुलिस के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं। ‘द नेटवर्क ऑफ वीमेन इन मीडिया’ ने इस हमले के विरोध में कहा, ‘‘उनको डरा धमका कर चुप करने की लगातार चल रही कोशिशें तुरंत रुकनी चाहिए और इनके लिए जि़म्मेदार लोगों को सज़ा मिलनी चाहिए।’’