बलात्कार एक ऐसा मुद्दा है जिसे हम आजकल सुर्खियों में बार बार देख रहे हैं। 16 दिसंबर को दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार के केस के बाद जो गुस्सा जाग उठा है वह एक बार फिर नज़र आ रहा पश्चिम बंगाल के बारासात शहर में हुए 20 साल की लड़की के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और हत्या के हादसे में। आश्चर्य की बात ये है की जहां एक तरफ कई शहर, राज्य और यहाँ तक कि राजधानी दिल्ली में भी इस केस के खिलाफ आवाज़ उठायी जा रही है वहीं पश्चिम बंगाल की सरकार ने इस केस में हुई पुलिस की लापरवाही पर सवाल नहीं उठाया है। ऊपर से सरकार ने इस में राजनीतिक साजिश तक ढूंढ निकाली है।
पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने यह कहा है कि मुख्य आरोपी को उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस से जोड़ने के पीछे एक राजनीतिक चाल है। इस बीस साल की लड़की का बेरहमी से सामूहिक बलात्कार हुआ और उसकी हत्या की गयी। इसके पीछे क्या राजनीतिक चाल हो सकती है? क्या ये सबसे पहले एक अपराध नहीं जिस पर कड़ी कारवाही होनी चाहिए? अफ़सोस की बात यह है कि 2011 में चुनाव के समय तृणमूल कांग्रेस की सरकार ने प्रशासन और पोलिस व्यवस्था को मज़बूत करने की बात कही। ये भी कहा कि उनकी सरकार सबके लिए है, सबसे दबे और कमज़ोर वर्ग के लिए। तृणमूल ने बंगाल के मशहूर कवि रविंद्रनाथ टैगोर की पंक्ति अपने घोषणा पत्र में शामिल की – ‘जहां हम निडर हैं और जहां हम सर उठा के जी सकते हैं – हम ऐसा राज्य स्थापित करेंगे।’ लेकिन आज पश्चिम बंगाल राज्य महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा में सबसे ऊपर है। लोगों के साथ इससे ज़्यादा धोखा क्या हो सकता है?
बलात्कार को भी बना डाला राजनीतिक मुद्दा
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