कठुआ, उन्नाव और सूरत में बलात्कार की घटना के बाद देश के कई अन्य इलाकों से भी बर्बर बलात्कार की घटनाएं सामने आई। इन सभी बलात्कार में पीड़ित नाबालिक बच्चियां थी। इस ही कारण देशभर में ऐसी घटनाओं का विरोध हुआ, साथ ही बलात्कारियों के लिए मृत्यु दण्ड की मांग जोर-शोर से होने लगी। इसके बाद केन्द्र सरकार ने 12 साल से कम आयु की बच्चियों से बलात्कार करने की सजा मृत्यु दण्ड कर दी है। वहीं 12 से 16 साल की बच्चियों से बलात्कार की सजा 10 साल से बढ़ाकर 20 कर दी, साथ ही 16 से ज्यादा उम्र की लड़कियों से बलात्कार की सजा को सात साल से बढ़ाकर 10 साल कर दी है।
लेकिन अभी भी दिमाग में ये प्रश्न उठा रहा है कि बलात्कार की कहीं न कहीं वजह समाज का गिरता स्तर भी है। आंकड़े देखें तो राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के अनुसार 2015 में बच्चियों के साथ बलात्कार के 11 हजार मामले दर्ज हुए, जो 2016 में 20 हजार हो गए। बुंदेलखंड में नाबालिक बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएं होती रहती हैं, पर कम मीडिया कबरेज के कारण ये घटनाएं दब जाती हैं। 14 अप्रैल 2018 में महोबा कोतवाली क्षेत्र के एक मोहल्ले में दस साल की लड़की के साथ बलात्कार की घटना हुई। लेकिन बलात्कारी कोई और नहीं लड़की का पिता था। हालांकि घटना के बाद महोबा पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया।
मार्च 2018 में पन्ना जिले में भी ऐसी ही घटना हुई, जिसमें पिता ने अपनी 13 साल की बेटी के साथ बलात्कार की कोशिश की। आरोपी को क्या सजा हुई, पता नहीं क्योंकि हमारी खबर लिखने तक उसे आईपीसी की 151 के तहत केस लिखने के बाद न्यायालय के आदेश पर आरोपी को छोड़ दिया था। चित्रकूट जिले में 15 साल की नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार की घटना हई। लड़की 2 अप्रैल 2018 को ये घटना तब हुई, जब लड़की रात को अपने घर से पेशाब करने के लिए बाहर गई। आरोपी पड़ोस का रहने वाला ही था।
ये सभी घटनाएं बच्चियों के साथ हुई हैं, और आरोपी उनके परिवार से या आस-पास का ही व्यक्ति है। 94 प्रतिशत मामलों में बलात्कार का आरोपी पारिवारिक ही होता है। इस स्थिति में बच्चियों के साथ बलात्कार के दोषी को मौत की सजा देना कहीं न कहीं इन मामलों को बाहर आने से रोकेंगे। साथ ही बच्चियों को बलात्कार के बाद मारने की प्रवृति भी बढ़ेगी, क्योंकि दोषी दोष छुपाने के लिए गवाह को खत्म कर देगा। हालांकि दोषी की दोष सिद्ध जल्दी होनी चाहिए। साथ ही समाज में महिलाओं के लिए सदियों से बनी उपभोगवादी सोच भी खत्म होनी चाहिए। आज भी हमारे समाज में स्त्री-पुरुष को अलग-अलग परिवेश में बढ़ा किया जाता है, जो काफी हद तक महिलाओं को पुरुषों के लिए उपभोगवादी वस्तु बना देता है। हम बच्चियों के साथ ऐसे अपराध करने वाले दोषियों को कड़ी सजा देने के पक्ष में है, पर समाज में पनप रहे इन अपराधों को जड़ ही नहीं देने पर भी काम करने की जरुरत को अनदेखा नहीं कर सकते हैं।
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