जिला वाराणसी। ए समय हर गावं में मनरेगा के काम बन्द चलत हव। कहा से गरीब लोग खहियन जीहन। अगर शहर में काम करे खातिर भी जात हयन। लोग एतना गर्मी में साइकिल चला के एतना दूर जात हयन। आउर काम नाहीं मिलत हव त वापस भी आवे के पड़त हव। इहां वहां काम खातिर के भटके के पड़त हव। अगर मनरेगा में काम मिलत त ए गावं से उ गांव तक भटके के ना पड़त। जब मनरेगा में काम मांगा त कहियन कि खाली सौ दिन काम मिलला। पता नहीं कब मिली।
हर गावं में समय समय पर मनरेगा में काम मिलत त मजदूर के भटके के ना पड़त। आउर ओनकर परिवार भी आराम स जात। दमर शहर में गइले पर भी का होत हव। कभी काम मिलल कभी नाहीं वापस आवे के पड़ला। लोग गावं के प्रधान से कहत कहत थक जात हयन। कभी कहियन कि चुनाव आवे वाला हव। कभी कहियन कि आचार संहिता लागू हव। कभी का कि अभीहीं काम ना होई। कभी कहियन कि बजट नाहीं हव। अइसे ही कह कह के टाल मटोल करत हयन। सरकार के पास बजट नाहीं हव त गावं वाला के काम कइसे मिली। ओन लोग के मनरेगा जहिसन योजना के लाभ कइसे मिली।
बन्द हव मनरेगा के काम
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