चुनाव और शराब का चोली दामन का साथ है। देश के चुनाव से लेकर गांव के चुनावों तक शराब चलती है। सरकार से दो कदम आगे होते हैं चुनाव लड़ने वाले। सरकारी प्रतिबंध से आंख चुराकर या पुलिस को अपने में मिलाकर लोग शराब बांट ही देते हैं।
बांदा जि़ले के नरैनी कस्बे में चार शराब के ठेके हैं। चुनाव के समय ठेके तो बंद थे। मगर इससे क्या होता है। शराब बेचने वाले ठेकों के आसपास ही मंडरा रहे थे। देशी शराब ठेके के मालिक विष्णु तिवारी ने बताया कि ‘चुनाव के दौरान शराब की मांग बढ़ जाती है। जहां आम दिनों में पच्चीस से तीस हज़ार रुपए की रोज़ाना कमाई होती थी वहां इन दिनों पचास से साठ हज़ार रुपए की रोज़ाना कमाई हो रही है।’ अंग्रेज़ी शराब के दुकानदार बिदा प्रसाद ने बताया कि ‘चुनाव में बीस से पच्चीस हजार रुपये की षराब बिक जाती है।’ इस संबंध में चित्रकूट जि़ला के आबकारी विभाग के आबकारी निरीक्षक आर.पी. श्रीवास्तव से बात की। उन्हांेने बताया कि ‘जि़ले में कुल एक सौ दो दुकानें हैं जिनमें तिरेपन देशी मदिरा, अट्ठाईस विदेशी मदिरा और बाईस बियर की दुकानें हैं। साथ ही भांग की चैदह दुकानं जि़ले में हैं। चुनाव मतदान के अड़तालिस घंट पहले दुकानें बन्द कर दी जाती हैं। यह सही भी है कि दुकानंे और ठेके बंद थे। मगर शराब की बिक्री धड़ल्ले से हो रही थी।
बंद ठेकों में जमकर बिकी शराब
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