फिल्म एक ईमानदार व्यक्ति की कहानी है। पुरुषोत्तम जोशी नाम का यह व्यक्ति नगरपालिका में सफाईकर्मी के पद पर है। पुरुषोत्तम जोशी सैंतीस सालों तक ईमानदारी से नौकरी करता है। उनकी आखरी इच्छा थी कि मरने के बाद उन्हें इक्कीस तोपों की सलामी मिले। उधर राज्य के मुख्यमंत्री की भी साथ-साथ कहानी चलती है। मुख्यमंत्री को दुख इस बात का नहीं होता कि उस पर घोटाले का आरोप है। बल्कि वह इससे दुखी है कि बारह सौ करोड़ रुपए का घोटाला करने के बावजूद उसे महज़ बारह करोड़ के लिए बदनाम किया जा रहा है। इस बीच पुरुषोत्तम अपने रिटायरमेंट से एक दिन पहले अपनी मच्छर मारने के लिए दवा छिड़काव करने वाली मशीन जमा करने पहुंचता है। बाबू पुरुषोत्तम को पंप बाहर ही रखने को कहता है। अगले दिन पुरुषोत्तम दफ्तर पहुंचता है तो वहां उसे चोर कहा जाता है। क्यूंकि पंप चोरी हो जाता है। पुरुषोत्तम सदमे से मर जाता है। आम आदमी को भला इक्कीस तोपों की सलामी कैसे दी जा सकती है। पर उसके बेटे सलामी दिलवाने की ठान लेते। यहीं से शुरू होता है हंसी ठहाकों का दौर।
फिल्मी दुनिया से – इक्कीस तोपों की सलामी
पिछला लेख
खुशी मनाने और जताने का तरीका है राई
अगला लेख