ब्योमकेश दादा से ज़्ारूर मिलें
3 अप्रैल को सिनेमा घरों में ‘डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी’ फिल्म आ गई। मशहूर लेखक शराधिन्दू बंधोपाध्याय की किताब पर आधारित इस फिल्म से लोगों को कई उम्मीदें हैं।
फिल्म कोलकाता शहर में 1930 के दशक का समय दिखाती है। ना सिर्फ उस समय देश अंग्रेज़्ाों के आधीन था बल्कि इस समय पर आज़्ाादी का आंदोलन भी चल रहा था। सालों पुराने समाज में एक आदमी था जो कोलकाता में जासूस का काम करता था। ब्योमकेश बक्शी के कारनामों पर लिखी गई किताबें एक समय पर बच्चे और बूढ़े – सभी पसंद करते थे।
हालांकि पहले भी इन किताबों पर फिल्में और टी.वी. प्रोग्राम बन चुके हैं, ये पहली बार मुख्यधारा हिंदी सिनेमा में इस किरदार पर फिल्म बनाई जा रही है। फिल्म में ब्योमकेश का किरदार निभा रहे हैं सुशांत सिंह राजपूत जिन्हें ‘पीके’ और ‘काइपोचे’ जैसी फिल्मों में देखा गया है। फिल्म का निदेर्शण दिबाकर बैनर्जी ने किया है। बैनर्जी का नाम ‘ओय लकी लकी ओय’ और ‘खोसला का घोसला’ जैसी फिल्मों के बाद से ही जाना जाने लगा है।
क्योंकि फिल्म की कहानी रहस्यमंद है, फिल्म देखने वाले असली गुनहगार का पता अंत में ही लगा पाएंगे।
बैन ही बैन – एक और फिल्म पर लगी रोक
अमेरिका में रहने वाले एक भारतीय निदेशक की फिल्म ‘अनफ्रीडम’ को भारत में बैन कर दिया गया है।
अमेरिका के न्यूयाॅर्क और भारत के नई दिल्ली शहरों में बसी इस फिल्म में दो लड़कियों के बीच समलैंगिक रिश्ते के साथ और भी कई विवादित मुद्दे दिखाए गए हैं।
फिल्म के निदेशक राज अमित कुमार की यह पहली फिल्म है। उन्होंने बताया कि भारत के सेंसर बोर्ड के फिल्म पर रोक लगाने का फैसला बेहद निराश करने वाला था। उन्होंने इस फैसले के खिलाफ अज़र््ाी डाली थी और उम्मीद थी कि कुछ हिस्सों को काटने के बाद फिल्म पर से रोक हटा दी जाएगी।