बांदा। भूरागढ़ किले के बगल से बने नटबलि के दो मंदिर पर हर साल मकर संक्राति का मेला लगता है। इस मेले के लगने की वजह एक प्रेम कहानी मानी जाती है।
भूरागढ़ कस्बे के सत्तर वर्षीय रघुनाथ बताते हैं कि सन 1850 की बात है। जब महोबा जिले के सुगिरा गांव का नोने अर्जुन सिंह भूरागढ़ किले का किलेदार था। मध्य प्रदेश के सरबई गांव के नट अपना करतब दिखाने यहां आते थे। किलेदार को नटों का करतब अच्छा लगा और उनको किले में काम पर रख लिया। एक नट को किलेदार की लड़की से प्रेम हो गया। किलेदार ने दोनों के विवाह की शर्त रखी। किलेदार ने नट को रस्सी के जरिए जिले की सबसे प्रसिद्ध केन नदी पार करने को कहा। नट ने शर्त मंजूर कर रस्सी से नदी पार करना शुरू कर दिया। नट नदी पार करते हुए किले में आने ही वाला था कि किलेदार ने रस्सी कटवा दी। नदी में गिरने से नट की मौत हो गई। किलेदार की लड़की ने भी किले से कूदकर जान दे दी। दोनों की मौत के बाद यहां मंदिर बनवाए गए तब से यहां हर साल मेला लगता है। मानना है कि जो इन मंदिरों और किले की दीवारों में नाम लिखते हैं, उन्हें उनका प्यार ज़रूर मिलता है।
प्रेमियों के लिए खास भूरागढ़ का मेला
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