जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय और भारतीय संस्थान, रुड़की द्वारा किए एक अध्ययन के अनुसार, मातृत्व व्यय में होने वाले खर्च से 46.6 फीसदी महिलाएं गरीबी की कगार में आ गई हैं। इस खर्च में प्रसव, प्रसव से पहले और बाद की देखभाल को लिया गया है। जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय और भारतीय संस्थान, रुड़की द्वारा किए एक अध्ययन के अनुसार, मातृत्व व्यय में होने वाले खर्च से 46.6 फीसदी महिलाएं गरीबी की कगार में आ गई हैं। इस खर्च में प्रसव, प्रसव से पहले और बाद की देखभाल को लिया गया है। ये बेहिसाब खर्च लोगों की आमदनी का 40 प्रतिशत है। 63 प्रतिशत इस खर्च को हम राज्य और केन्द्र शासित राज्यों की दृष्टि से देखे तो छत्तीसगढ़ में 53.7 प्रतिशत और पुंडिचेरी में 53.4 प्रतिशत है। वहीं तेलंगाना में ये प्रतिशत 65.7 है। 2014 से आगे आने वाले 10 सालों में स्वास्थ्य व्यय के कारण 50.6 मिलियन लोग गरीबी की मार झेलेंगे। बहुत सी अनपढ़ महिलाएं सार्वजनिक अस्पतालों में कम आय होने के कारण घरों में प्रसव करती हैं, जिसमें गांवों का 79.2 प्रतिशत और शहरों का 67.7 प्रतिशत है। साथ ही शिक्षित महिलाओं में खून की कमी की आशंका ज्यादा हो रही है। समाज के अलग-अलग समूहों में देखें तो अनुसूचित जनजातियों में 71.5 प्रतिशत प्रसव व्यय से जनजातियां गरीबी की कगार पर आ जाएंगी। वहीं गांवों में अनुसूचित जनजातियों की 85 प्रतिशत महिलाएं सार्वजिनक अस्पतालों में जाती है। ये आंकड़ा अन्य जातियों की तुलना में अधिक है। देश के हर भाग में चलने वाली मातृत्व योजना का लाभ दो बच्चों में ही मिलता हैं, जिसके कारण बहुत-सी महिलाएं इस लाभ से दूर हो जाती हैं। सरकार को सार्वजिनक अस्पतालों में मिलने वाली सुविधाओं और इलाज की गुणवता को भी सुधारना चाहिए। वहीं सरकार की जननी सुरक्षा योजना भी इस दिशा में कुछ खास काम नहीं कर पा रही है।
फोटो और लेख साभार: इंडियास्पेंड