किसानों से लेकर राज्य सरकारों का प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से मोहभंग होता जा रहा है। दरअसल, इस योजना के किसानों को रबी के लिए 1.5 प्रतिशत और खरीफ के लिए 2 प्रतिशत का प्रीमियम चुकाना पड़ता है। बाकी की प्रीमियम राशि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर चुकाती हैं।
पिछले वित्तीय वर्ष में बीमा कम्पनियों को करीब 24 हजार करोड़ रुपए दिए गए। रबी की फसल आने के 4 महीने बाद भी अभी तक किसानों को केवल 400 करोड़ रुपए का ही भुगतान किया गया है। इसी तरह इससे पिछले वित्तीय वर्ष में बीमा कम्पनियों को करीब 22 हजार करोड़ रुपए दिए गए और उसने किसानों को करीब 12 हजार करोड़ का मुआवजा दिया। इस तरह घर बैठे बीमा कम्पनियों को करीब 10 हजार करोड़ का मुनाफा हुआ।
केंद्र सरकार तो इस खर्च को आसानी से वहन कर लेती है लेकिन राज्य सरकारों के कृषि विभागों पर बोझ बढ़ता ही जा रहा है। उदाहरण के लिए राजस्थान में कृषि विभाग का सालाना बजट 2800 करोड़ का है। जबकि बीमा का प्रीमियम चुकाने में इसमें से 1250 करोड़ रुपए खर्च हो गए। यह कुल बजट का 40 प्रतिशत बैठता है।
राज्य सरकार का कहना है कि लंबे समय तक इस खर्चे को उठा पाना न तो संभव हो सकेगा और न ही व्यावहारिक। आने वाले सालों में इस खर्च में इजाफा ही होना है क्योंकि प्रीमियम की दरें बढ़ने की आशंका ज्यादा है। कुछ अन्य राज्य सरकारें भी केंद्र से इस खर्च को लेकर चिंता जाहिर कर चुकी हैं।
जानकारों का भी कहना है कि जब खाद पर सारी सब्सिडी का बोझ केंद्र सरकार उठा सकती है तो फिर फसल बीमा का पैसा क्यों अकेले अपनी जेब से नहीं दे सकती? जबकि योजना भी प्रधानमंत्री के नाम पर ही शुरू की गई है।
यही वजह है कि किसानों का इस योजना से मोहभंग हो रहा है। पिछले साल के मुकाबले बीमा के तहत आने वाला फसली क्षेत्र भी घटा है और फसल बीमा कराने वाले किसानों की तादाद भी घटी है।
2016-17 में कुल फसली क्षेत्र के 30 प्रतिशत का बीमा हुआ था जो 2017-18 में घटकर 23 प्रतिशत ही रह गया है जबकि लक्ष्य 40 प्रतिशत का था।
2016-17 में 5 करोड़ 53 लाख किसानों ने फसल बीमा करवाया था जो 2017-18 में कम होकर 4 करोड़ 80 लाख किसानों पर आ गया है और देशभर में किसान पहले से ही सड़कों पर हैं।