उत्तर प्रदेश समेत बांदा अउर चित्रकूट मा डाक्टरन के कमी हमेशा से बनी रही है अउर अगर महिला डाक्टरन के बात कीन जाय तौ अउर भी बुरे हाल हैं। जिला अस्पतालन मा जब महिला डाक्टर के कमी है तौ ब्लाक अउर गांव स्तर मा बने सामुदायिक अउर प्राथमिक केन्द्र के बात करब दूर है।
अगर महिला डाक्टरन के बारे मा स्वास्थ्य विभाग के अधिकारिन के बात कीन जाय तौ उंई एक ही बात बोलत हैं कि जब पूरे उत्तर प्रदेश मा डाक्टरन के कमी है तौ महिला डाक्टर कसत पूरे होई पइहैं। अगर सरकार मातृ एवं शिशु दर रोकै खातिर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन अउर जननी सुरक्षा योजना जइसे योजना लागू करे है तौ इं योजना लक्ष्य तक कसत पहुंचिहैं? अब सरकार के जिम्मेदारी बनत है कि महिला डाक्टर के कमी का पूरा करै। महिला डाक्टरन के कमी निहाय जबैकि महिला डाक्टरन के भर्ती करैं मा कमी है। डाक्टर के पढ़ाई के परीक्षा के बाद के आंकड़ा बतावत हैं कि लड़की भी या क्षेत्र मा आगे हैं। या कहिके काहे टालैं के कोशिश कीन जात है कि लड़की डाक्टरी के पढ़ाई बहुतै कम करत हैं।
अगर या बात सही है तौै बहुत सारी महिला डाक्टर हैं जउन खुद आपन निजी अस्पताल खोले हैं। यहिका देख के या समझा जाय कि महिला डाक्टर के पढ़ाई करैं वाली लड़की लोगन के इलाज नहीं बिजनेस करैं खतिर डाक्टर बनत हैं।
जउन पढ़ाई कइके सरकारी पोस्ट मा जाय भी चाहत हैं तौ सरकारी अस्पतालन के अव्यवस्था देखके ग्रामीण क्षेत्र मा नहीं जाय। यहिका एक कारन अउर है कि जिला अस्पताल के महिला डाक्टर गांव के अस्पतालन मा अटैच होत है।
प्रदेश मा काहे है महिला डाक्टरन के कमी
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