तीन सालों में नसबंदी बनाम नलबंदी में महिलाओं ने पुरुषों को पछाड़ दिया है। महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की नसबंदी ज्यादा सुरक्षित है। महिलाओं के मुकाबले पुरुषों को प्रोत्साहन राशि भी ज्यादा दी जाती है, लेकिन फिर भी महिलाओं से 96 प्रतिशत कम पुरुष नसबंदी करवाते हैं। इसी कारण पुरुष नसबंदी करवाने में प्रदेश में 11वें स्थान पर है।
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार जागरूकता के अभाव में पुरुष नसबंदी करवाने से कतराते हैं। वर्ष 2017-18 में स्वास्थ्य विभाग ने महिलाओं की नलबंदी के लिए 3750 का लक्ष्य रखा जिसमें 1828 महिलाओं ने नलबंदी करवाई।
वहीं पुरुषों की नसबंदी के लिए जिले में 250 पुरुषों की नसबंदी का टारगेट रखा गया, जिसमें 68 पुरुषों ने ही नसबंदी करवाई। जिले में स्वास्थ्य विभाग ने 2017 में डिलिवरी के बाद नलबंदी ऑपरेशन करवाने के लिए 3900 महिलाओं का टारगेट रखा था। इसमें 8513 महिलाओं ने नलबंदी ऑपरेशन करवाया, जो टारगेट का 218 प्रतिशत है और प्रदेश में पहले स्थान पर है।
दरअसल, पुरुषों में जागरूकता की कमी नसबंदी के ऑपरेशन में आड़े रही हैं। पुरुषों का मानना है कि अगर ऑप्रेशन हो जाता है तो उन्हें कई माह तक बेड रेस्ट करना पड़ेगा। ऐसे में दहाड़ी मजदूरी पर भी इसका असर पड़ेगा।
जिले में 2017-18 के आंकड़ों के अनुसार, 1828 महिलाओं ने नलबंदी और 68 पुरुषों ने नसबंदी का ऑपरेशन करवाया।
2017-2018 के आंकड़ों के अनुसार, पुरुष नसबंदी का टारगेट 250 ऑपरेशन है। प्रदेश में 68 है। प्रदेश में 11वें स्थान पर जिला है। जबकि महिला नलबंदी कर टारगेट– 3750 ऑपरेशन है। 1828 के साथ प्रदेश में 10 स्थान पर हैं। वहीँ, डिलिवरी के बाद ऑपरेशन का टारगेट 3900 ऑपरेशन है। 8513 के साथ प्रदेश में पहले स्थान पर हैं।