जिला फैजाबाद, अयोध्या रामघाट। हिंआ रामजानकी दास पचपन साल से रहत हईन। जवने मेहरारू का कउनौ सहारा नाय रहत उनका दनके आश्रम मा सहारा मिलाथै। षारीरिक, मानसिक रूप से प्रताडि़त कै गै मेहरारू हिंआ साधवी के रूप मा रहाथिन। ई जगह माई बाड़ा के नाम से जाना जाथै।
रामजानकी दास बताइन कि हमार घर षाहजहांनपुर रहा। हमार महतारी-बाप नाय रहे। चैदह साल के उमर मा स्टेषन पै हमैं कौषिल्या मिलिन। उनके साथे चारौ धाम कै यात्रा करत हम अयोध्या चली आयन। ई जगह माई बाड़ा के नाम से जाना जाथै। ई नर्वदादास माई कै बनावा आय। काफी संघर्ष के बाद ई जमीन मिली बाय।
तमाम प्रकार कै हिंसा झेल के मेहरारू जेकै केहू सहारा नाय रहत। बिहार, झारखण्ड जैसेन जगह से आवाथिन। जब तक मन हुआथै रहाथिन वकरे बाद चली जाथिन। सत्तर साल के रामजानकी दास कै कहब बाय कि भूले बिछड़े मनईन का हिंआ षरण मिलाथै। सब हिंआ साधू के रूप मा रहाथिन। बीस-पच्चीस मेहरारू हमेषा हिंआ रहाथिन कवनिव प्रकार से खाना पीना कै प्रबन्ध कै जाथै। कउनौ कमाई कै जरिया नाय बाय। लकिन गरीब दुखिया का सहारा दीन जाथै।
पीडि़त मेहरारून का दियत सहारा
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