आजकल देश में जहां अल्पसंख्या के खिलाफ हो रही हिंसाओं की खबरें आ रही हैं, वहीं दूसरी ओर वाराणसी की रहने वाली आलमआरा पारे के शिवलिंग बनाकर हिन्दू मुसलमान भाईचारे की मिसाल दे रही हैं। आलमआरा ये काम पिछले डेढ़ दशक से कर रही हैं। पारे को शिवलिंग में बदलने की प्रक्रिया थोड़ी मुश्किल है, जो 5 घंटे तक चलती है। आजकल देश में जहां अल्पसंख्या के खिलाफ हो रही हिंसाओं की खबरें आ रही हैं, वहीं दूसरी ओर वाराणसी की रहने वाली आलमआरा पारे के शिवलिंग बनाकर हिन्दू मुसलमान भाईचारे की मिसाल दे रही हैं। आलमआरा ये काम पिछले डेढ़ दशक से कर रही हैं। पारे को शिवलिंग में बदलने की प्रक्रिया थोड़ी मुश्किल है, जो 5 घंटे तक चलती है। वाराणसी के प्रहलाद घाट की रहने वाली आलमआरा को शिव में बहुत विश्वास है। शिवलिंग बनाने की शुरुआत के बारे में वह बताती हैं कि एक बाबा उनके घर आए और उनके पति से आलमआरा के हाथों की चाय बनाकर पिलाने को बोले। बाबा को जब चाय पिलाई गई तो उन्होंने खुश होकर उन्हें शिवलिंग बनाना सीखाया। उस समय उनके घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं थी। आलमआरा के पति शिवलिंग बनाने का काम करने लगे, पर पति के अचानक निधन के बाद उन्हें इस काम को खुद से करने का निश्चय किया। हालांकि इस काम को करने में उनकी तीनों बेटियों और देवर मैकश ने भी मदद की। आलमआरा ने 16 ग्राम से लेकर ढाई क्विंटल तक के शिवलिंग बनाएं हैं। आज उनके शिवलिंगों की मांग वाराणसी से लेकर देश-विदेश तक है। पारे को तरल से ठोस बनाने के काम में अभी तक उनको और उनके परिवार को कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं हुई है।