जिला बाराबंकी, तहसील हैदरगढ़, गांव बारा उहै पान जवन खाय के होठ ही नाय मन भी रंगीन होय जाथै।येही रंगीन पान के किस्सा तौ बहुत बाय लकिन का आप जानाथिन की यका खेत से आप तक पहुचै मा केतनी मेहनत अउर प्रक्रिया से गुजरे का पराथै।
गोपीचंद चौरसिया पान के किसान कै कहब बाय कि पान के पौधा कै जड़ लागाथै। भीट बनावै से पहिले नवम्बर दिसंबर मा फरुहा से गोड़ाई हुवाथै।फिर लकड़ी के मुगरी से पिटाई हुआथै। घेरा बनायके क्यारी बनाई जाथै। बोवै के समय फिर से गोड़ा जाथै। फिर क्यारी मा हाथ से वकै जड़ गाड़ी जाथै।
राजकुमार पान के किसान कै कहब बाय की पान बड़ा बड़ा मनई खाथे। पान खाय से शान बनाथै। गोपीचंद कै कहब बाय की सेठा बांस लावै मा दिक्कत हुआथै। सिचाई घड़ा अउर इंजन दुइनौ से कीन जाथै।पान मा दुइनौ समय हल्का पानी चाही।
राज कुमार कै कहब बाय की मार्च महीना मा यके खेती कीन जाथै। छह सात महीना मा तैयार होय जाथै। छाव के ताई टटिया बाँधी जाथै। अउर अगर न बाँधी जाय तौ नीलगाय ख़तम कै देइहैं। पान के खेती मा दवाई सुपरफास्ट, जिंक, खरी डारी जाथै। पान बेचै लखनऊ, बनारस तक जाई थी।
रिपोर्टर- नसरीन
23/05/2017 को प्रकाशित