ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रहने वाली कई औरतों के लिए 8 मार्च यानी महिला दिवस मनाने का शायद कोई खास कारण नहीं है। हर दिन की तरह उनका यह दिन भी तकरीबन एक किलोमीटर की लम्बी दूरी तय करके पानी लाते हुए ही गुज़र जाएगा।
आइए नज़र डालते हैं उनके रोज़ाना के संघर्ष भरे जीवन पर… छत्तीसगढ़ के 82.2 प्रतिशत घरों की महिलाएं पीने के पानी के लिए रोज़ाना लगभग 500 मीटर तक की दूरी तय करती हैं। यानी एक साल में वे गुड़गांव से आगरा तक की दूरी के बराबर चलती हैं।
एक दिन में लगभग 20 मिनट (एक महीने में 10 घंटे) पानी लाने में खर्च होते हैं। यानी एक दिन के वेतन या इतने घंटों के काम का नुकसान होता है।
साल 2008-09 के मुकाबले साल 2011-12 में ग्रामीण और शहरी इलाकों के लोग 173 किमी. दूरी तय करके पानी लेने जाते हैं।
नेशनल सैंपल सर्वे के अनुसार ग्रामीण इलाकों में लोग रोज़ाना पानी के स्रोत के पास अपनी बारी के इंतज़ार में औसतन 15 मिनट तक खड़े रहते हैं।
अपने घरों में पानी के स्रोतों की उपलब्धता वाले इलाकों में पंजाब 84.7 प्रतिशत के साथ सबसे आगे है जबकि छत्तीसगढ़ 17.3 प्रतिशत के साथ सबसे पीछे है।
ग्रामीण इलाकों में पीने के पानी को साफ करने के लिए कई उपायों को आज़माया जाता है। उत्तर प्रदेश में मात्र 1.7 प्रतिशत, बिहार में 2.2 प्रतिशत और हरियाणा में 6.6 प्रतिशत घरों में पानी को उबाल कर, छान कर, रसायनों या बिजली से चलने वाली मशीनों द्वारा साफ किया जाता है।
यह सर्वे पत्रिका ‘डाउन टू अर्थ’ द्वारा किया गया है।