बात उस समय की है जब मैं 13-14 साल की थी। एक नयी उमंग, नयी चाहत जैसे सुबह का सूरज रौशनी से पूरे जहां में अपने होने का अहसास करना चाहता है। यह उम्र ही ऐसी होती है। खुद को आईने में देखती, अपने नव अंकुर से विकसित हो रहे अंगों को देख खुश होती। शायद इस उम्र में सारी लड़कियां ऐसा ही करती हैं। उन्हें लगता है कि कोई उनकी तारीफ़ करे, उसे प्यार करे।
लेकिन तभी इन ख्यालों के खोने का एक डर, खुद को झकझोर जाता। जैसे किसी शांत बहने वाली नदी में अचानक पत्थर मारा हो, मुझे लगता था की कोई लड़का प्यार नहीं करता बस लड़कियों को इस्तेमाल की चीज़ समझता है।
मेरी इस सोच की भी वजह थी। मैंने उस उम्र में ही ऐसी घटनाओं को देखा, सुना और महसूस किया था जिससे लड़के और प्यार से नफरत ही नहीं घृणा होती थी। मैं देखने में बहुत सुन्दर नहीं पर ठीक-ठाक थी। छोटा कद , बड़ी आँखें, लम्बे बाल।
खैर, उस उम्र में कोई भी सुन्दर लगती है। बड़े लड़के मुझ से बात करने और दोस्ती करने के हर एक मौके ढूंढते। लेकिन मेरी मन की घृणा उन्हें अपने पास फटकने भी नहीं देती। मन का डर भावनाओं को ऐसे ढक देता जैसे सुबह की रौशनी को ठंड के कोहरे ने घेरा हो। वो बाहर तो आना चाहती थीं लेकिन कोहरे ने उसे जकड़ा हुआ था।
वक़्त बदला और फिर मेरी सोच भी बदल गई। आज मेरी उम्र 28 साल है, मैं एक कामकाजी महिला होने के साथ –साथ दो बच्चों की माँ भी हूँ। काम के दौरान मुझे कई लोगों से बात करनी होती है और अक्सर बाहर आना-जाना भी होता है। जिससे मेरी सोच बदल गई।
अपने सहकर्मियों से जब उनके प्यार की बातें सुनती हूँ तो लगता है कि मैंने वो लम्हा खो दिया। जब भी वो अपनी प्रेम कहानी सुनाती है तो लगता है कि काश! वो पल मुझे फिर से मिल जाएं!!
आज, इतने लम्बे समय के बाद मुझे समझ आया है कि प्यार बुरी चीज़ नहीं है। मैं एक शादी-शुदा और ज़िम्मेदार औरत हूँ। जिसका पति उसका ख्याल रखता है। उससे प्यार भी करता है। लेकिन लड़कपन के प्यार का एहसास अलग ही होता और जो मुझे अभी भी याद आता है।
साभार: एजेंट्स और इश्क और खबर लहरिया के वर्कशॉप से