‘भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुझ से कहा था, अगर महिलाओं को पुरुषों से कंधा मिलाना है तो उन्हें दो सौ गुना मेहनत करनी होगी। जितने सवाल पुरुषों से नहीं पूछे जाएंगे उससे कहीं ज़्यादा महिलाओं से पूछे जाते हैं, इस बात को मैंने हमेशा माना।’ यह कहना है मृणाल पांडे का।
मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में 1946 में जन्मी पांडे हिंदी पत्रकारिता की जगत में अपनी जगह बना चुकी हैं। ‘1980 के दशक में इस क्षेत्र में गिनी चुनी महिलाएं होती थीं। मैंने अपना रास्ता खुद बनाया और वह इसलिए कि मैंने रटा-रटाया काम नहीं किया।’ टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, हिंदुस्तान जैसे अखबारों के साथ-साथ उन्होंने टी.वी. में भी अपनी जगह बनाई। ‘टी.वी. में मैंने देखा कि महिलाओं का एक सुंदर चेहरे की तरह इस्तेमाल करते हैं। मैंने इन सब धारणाओं को तोड़ने की कोशिश की और काम किया।’
पांडे ने अपने काम के ज़रिए साबित किया कि महिलाएं भी बड़े पद की जि़म्मेदारी अच्छी तरह निभा सकती हैं। वह मानती हैं कि महिलाएं पत्रकारिता में एक नई सोच लेकर आती हैं और उनके लेखन में ताज़गी होती है। उनका एक सपना है कि भाषाई पत्रकारिता में महिलाएं बढ़ चढ़ कर आएं पर इसके लिए परिवारों की सोच बदलने कि ज़रूरत है।
पहली महिला जो पहुंचीं संपादक के पद तक
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