नई दिल्ली। परीक्षा में नकल या किसी भी तरह की धोखाधड़ी रोकने के लिए पहनावा तय करने को लेकर इन दिनों बहस चल रही है। सेंट्रल बोर्ड आफ सेकेंडरी एजुकेशन या सी.बी.एस.ई ने हाल ही में आल इंडिया प्री मेडिकल की परीक्षा में नकल या धोखाधड़ी रोकने के लिए ड्रेस कोड यानी पहनावा तय किया है।
परीक्षा के दौरान स्कार्फ, हिजाब, कपड़ों पर बड़े बटन, पूरी बांहों के कपड़े या फिर चूडि़यां या चूड़े पहनकर आने पर रोक लगा दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले का समर्थन किया है। इस तरह की रोक के खिलाफ कोर्ट में डाली गई अर्जी को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा कि एक दिन स्कार्फ या हिजाब न पहनने से आस्था गायब नहीं हो जाएगी। दरअसल यह सारी बहस व्यापम घोटाला यानी मध्य प्रदेश में डाक्टरी, इंजीनियरिंग और सरकारी पदों की प्रवेश परीक्षा में हुए घोटाले से जुड़ी है। इसमें हुए घोटाले के बाद ही सी.बी.एस.ई. ने परीक्षा में होने वाली धोखाधड़ी पर रोक लगाने के लिए यह कदम उठाया। मगर सी.बी.एस.ई. के इस फैसले और सुप्रीम कोर्ट के बयान की आलोचना हो रही है।
इससे पहले केरल के उच्च न्यायालय ने दो मुस्लिम औरतों की याचिका की सुनवाई के दौरान कहा था कि औरतों को अपनी धार्मिक आस्था के अनुसार कपड़े पहनने का हक है। संविधान के अनुसार सभी को धार्मिक आजादी का हक है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि पहनावा धर्म से नहीं बल्कि संस्कृति से जुड़ा मुद्दा है। इससे धर्म पर असर नहीं पड़ता।
खबर लहरिया की टिप्पणी
परीक्षा में धांधली या धोखाधड़ी रोकने के लिए प्रशासन को चुस्त होना चाहिए न कि लोगों के पहनावे बदलने चाहिए। इस तरह के फैसलों से लड़कियों की शिक्षा पर असर पड़ेगा। पहनावे पर रोक इनके डाक्टर बनने की इच्छा पर रोक लगाने जैसा साबित हो सकता है। शिक्षा और पहनावा दो अलग अलग चीजे हैं। किसी संस्कृति या फिर धर्म के कारण शिक्षा के हक पर असर नहीं पड़ना चाहिए। इस तरह की पाबंदी महिला अधिकारों और कहीं न कहीं अल्पसंख्यकों के हकों के खिलाफ है।