बढ़ती गरमी में पानी की कमी, बिन मौसम बरसात से खेती का नुकसान और मौसमों की बदलती चाल ढाल का असर गांव से लेकर बड़े शहरों तक सब पर पड़ता है। इसे सुलझाने के लिए नागरिकों की उतनी ही जि़म्मेदारी है जितनी सरकार की है। उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद जिले में गांव के बीचों बीच बने पेपर मिल का मलबा तालाब में जाता है। महोबा के कबरई ब्लाक में पहाड़ों को खोदने की कोई सीमा ही नहीं है और बनारस में घूमने आए लोग गंगा नदी के पानी में पूजा की सामग्री से लेकर प्लास्टिक की बोतलों तक सब कुछ विसर्जित करते हैं।
नई सरकार में पर्यावरण और वन मंत्रालय के मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा है कि उनके राज में कई नए प्रौजेक्ट पास किए जाएंगे। इनमें से कई प्रौजेक्ट ऐसे हैं जिनका पर्यावरण पर बुरा असर भी पड़ सकता है लेकिन इनसे देश की आमदनी बढ़ेगी। उन्होंने खुद कहा कि जंगलों से देश करोड़ों रुपए कमा सकता है और उनकी पूरी कोशिश रहेगी कि ऐसा संभव हो सके। वहीं एक विश्व स्तरीय रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में लगभग छह करोड़ लोग पूरी तरह से जंगलों पर निर्भर हैं। यदि जंगलों की ज़मीन और संसाधनों का फैसला सरकार लेगी तो उन इलाकों में सदियों से रह रहे लोगों का क्या होगा?
मई 2014 में ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के बीस सबसे दूषित शहरों की सूची में तेरह शहर भारत के हैं। जंगलों की लकड़ी काटकर, पहाड़ों को खोदकर, कीमती पदार्थों के लिए खनन – ऐसी प्रक्रियाओं के लिए सख्त नियम और कानून की ज़रूरत है। केवल विकास नहीं, स्वच्छ पानी और हवा और प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने की ओर नागरिकों और सरकार को मिलकर काम करना है।
पर्यावरण को लें गंभीरता से
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