बेटी पैदा होने पर शोक मनाने वालों को नेहा के जज्बे से सीख लेनी चाहिए। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला शहर के ज्वालाजी मंदिर में नगाड़ा बजाकर नेहा, पिता के इलाज और परिवार की ज़िम्मेदारी के साथ-साथ अपने भाई-बहन की पढ़ाई का जिम्मा उठा एक मिसाल कायम कर रही है।
नेहा के पिता तीन साल पहले एक हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इससे इनका चलना-फिरना बंद हो गया। घर में कमाने वाला और कोई नहीं था। ऐसे में दो वक्त की रोटी कमाने का जिम्मा बड़ी बेटी नेहा पर आ गया। तब से नेहा ने पिता का काम संभाल लिया। नेहा अपने पिता की जगह मंदिर में नगाड़ा बजाने के लिए जाने लगी। पहले रिश्तेदारों और समाज के कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया लेकिन परिवार की जरूरतों को देखते हुए नेहा ने यह काम जारी रखा।
नेहा कहती हैं कि वह अपनी खुशी से बुजुर्गों की इस परंपरा को निभाने के लिए तैयार हुई हैं। उन पर परिवार का कोई दबाव नहीं है। यह मेरे लिए फक्र की बात है कि मैं मुश्किल घड़ी में परिवार के काम आ सकूं।
जो बेटे अपने पिता के परंपरागत पेशे को अपनाने से परहेज कर रहे हैं, उसी पेशे को अपनाकर नेहा अपने पिता का इलाज करवाने के साथ परिवार की आर्थिकी को संबल दे रही हैं।
हिमाचल के ज्वालाजी मंदिर के मुख्य द्वार पर पिता की भांति नगाड़ा बजाकर नेहा पारिवारिक परंपरा को तो निभा ही रही हैं। साथ ही पिता की बीमारी का इलाज भी करवा रही हैं। खुद पिता कहते हैं कि उन्हें बेटी ने बचाया है।