संजय लीला भंसाली की पद्मावती जो अब पद्मावत नाम से रिलीज हो चुकी है के विवाद से कौन अनजान होगा? राजपूतों की शान का बीड़ा कंधों में उठाने वाली करणी सेना से फ़िल्म के विरोध में राजपूत महिलाओं द्वारा जौहर करने तक की धमकी दे डाली थी। लेकिन धमकियों और हिंसात्मक घटनाओं के बीच फ़िल्म आज सबके सामने है।
ये तो थी फ़िल्म और उससे जुड़ी इतिहास की एक कहानी की बात जिसे कुछ इतिहासकार सिरे से ख़ारिज भी करते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि बांदा के जारी गांव में महासती जावित्री देवी का एक ऐसा मंदिर है जहाँ की देवी अपने पति के साथ ही मृत्युशय्या पर सती हो गई थीं!
बाँदा के जारी गाँव में हर साल जनवरी माह में भव्य मेला लगता है। यह मेला जावित्री देवी की याद में लगता है।
जावित्री देवी मंदिर की पुजारिन माया बताती हैं कि यह माना जाता है कि जब उनके पति की मृत्यु करीब आई तब जावित्री देवी अपने मायके में थीं और उन्होंने वहीं अपने पति की मृत्यु को सपने में देख लिया था। इसके बाद वह अपने घर लौटी और पति की मृत्यु के साथ ही उन्हें गोद में लेकर जलती चिता में वह बैठ गई और पति संग सती हुई।
यहीं हमें सती और जौहर के बीच का अंतर समझ आता है कि सती पति के साथ चिता पर जल जाना होता है और जौहर परंपरा के अनुसार रानियां राजा के युद्ध में मारे जाने के बाद दुश्मनों से बचने के लिए सामूहिक रुप से आग में जल जाती थी।
बरगैहनी गाँव बांदा की रंजना का मानना है कि यह मंदिर और यह प्रथा सही है। इस प्रथा के बारे में उनकी माँ ने उन्हें बताया।
यह कहना आसान नहीं है कि मलिक मोहम्मद जायसी की पद्मावती ऐतिहासिक थी या साहित्यिक क्योंकि इनकी सत्यता में काफी मतभेद है, लेकिन जावित्री की कहानी बुंदेलखंड की सच्ची कहानी मानी जाती है। शायद यही वजह है जो आज भी यह परंपरा बुंदेलखंड में जिंदा है। बता दें कि इस क्षेत्र में ऐसे पांच सती मंदिर हैं
बताया जाता है कि 1995 से 2005 के बीच बुंदेलखंड में पांच महिलाओं ने सती होकर इस मुद्दे को फिर से गरमा दिया था।
गाँवनिवासी रानी ने महिलाओं को सती होते हुए देखा है। वो कहती हैं कि सजी–धजी महिलाएं अपने पतियों के साथ चिता में जलती है।
इस बारे में माया पुजारिन का कहना है कि सती से पहले महिलाएं सुहाग का जोड़ा पहनती हैं और पूरे साज–श्रृंगार के साथ चिता पर बैठती हैं और उनके साथ ही श्रृंगार का सारा सामान चढ़ा दिया जाता है।
हालांकि देश में कानून में सती होने को अब अनुमति नहीं दी जाती लेकिन यहाँ परंपरा का सवाल है जो अभी भी बुंदेलखंड में बाकी है। दर्शन, चढ़ावा, गीत और मंदिरों में सती आज भी जिंदा है।
गाँव निवासियों का मानना है कि यही सती देवी उनकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। इसलिए यहाँ मेला और उत्सव का माहौल रहता है।
माया पुजारिन कहती हैं कि यहाँ अपार भीड़ आती है सती होती महिला को देखने के लिए और खूब चढ़ावा भी चढ़ता है।
रिपोर्टर- मीरा देवी और कविता देवी
Published on Jan 25, 2018