उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जातियों और जनजातियों को पदोन्नति में आरक्षण देने की बात के खिलाफ उत्तर प्रदेश के 18 लाख से ज्यादा सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। उधर 17 दिसंबर 2012 को राज्य सभा में यह विधेयक (किसी भी नीति को लागू करने के लिए कानून बनने की प्रक्रिया) पास हो चुका है।
पूरे उत्तर प्रदेश में सर्वजन हिताय संरक्षण समिति के नेतृत्व में हड़ताल और धरने किए जा रहे हैं। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 16 दिसंबर 2012 को सरकारी विभागों के कर्मचारियों ने धरना किया और सड़कें जाम की। लखनऊ में बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) के कार्यालय के बाहर मायावती का पुतला फूंकने की कोशिश भी की। कांग्रेस कार्यालय के बाहर भी तोड़फोड़ की।
जिला वाराणसी, काशी विद्यापीठ ब्लाक में भी नादेसर स्थित लोकनिर्माण विभाग कार्यालय के बाहर 14 दिसंबर को दस से ज्यादा सरकारी विभागों के लोग हड़ताल पर रहे। लोगों का कहना है कि अभी तक तो नौकरियों में ही आरक्षण था, लेकिन इस विधेयक के कानून बनने के बाद नौकरी पाने के बाद पदोन्नति में भी आरक्षण होगा। इसका लोगों के काम पर बुरा असर पड़ेगा।
बांदा जिले में भी 16 दिसम्बर को विकास भवन के कर्मचारी व अधिकारी धरने पर बैठे। वन विभाग, पशु चिकित्सा विभाग, सिंचाई विभाग में भी ताला पड़ा रहा। महोबा में 14 दिसम्बर से लगभग पैंतीस कर्मचारी धरने पर बैठे थे।
क्या बदलेगी देश की राजनीति?
उत्तर प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे को लेकर सरकारी कर्मचारियों ने साफ कर दिया है कि वे अपने से छोटे पद के आरक्षित श्रेणी के लोगों के नीचे काम नहीं करेंगे। सर्वजन हिताय समिति ने घोषणा की है कि आरक्षण के समर्थन में मतदान करने वाले सांसदों से इस्तीफे की मांग की जाएगी। समिति ने भाजपा और कांग्रेस को चेतावनी देते हुए कहा कि आरक्षण के पक्ष में मतदान करने का नतीजा इन दोनों पार्टियों को साल 2014 के लोकसभा चुनावों में भुगतना पड़ेगा।
विधेयक कैसे होता है पास
किसी भी विधेयक को पास होने के लिए संसद के दोनों सदनों – लोक सभा और राज्य सभा में मतदान होता है। दो तिहाई बहुमत (यानी समर्थन मिलने) पर ही इसे पास किया जाता है। पदोन्नति आरक्षण विधेयक पर राज्य सभा में 216 सदस्यों ने मतदान किया जिसमें से दो सौ छह पक्ष में थे और केवल दस विपक्ष में थे।
अब इस विधेयक को लोकसभा की मंजूरी मिलनी बाकी है। इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद ही इसी कानूनी मान्यता मिलेगी।