देशभर में पत्रकार नेताओं, नौकरशाहों और दबंगों के निशाने पर हैं। उत्तर प्रदेश के चंदौली जि़ले में हेमंत यादव की हत्या ताज़ा मामला है। घटना के करीब एक हफ्ते बाद भी पुलिस अपराधियों को नहीं ढूंढ पाई है। इससे पहले जून में उत्तर प्रदेश के ही शाहजहांपुर में जोगेंद्र सिंह नाम के एक पत्रकार को उसके घर के सामने ही जलाकर मार दिया गया। इस घटना के एक दिन बाद ही मध्य प्रदेश के बालाघाट पर एक पत्रकार का शव मिला। इसका नाम संदीप था। संदीप पिछले कई महीनों से रेत माफिया के खिलाफ मोर्चा खोले हुए था। पुणे के भी एक पत्रकार की हत्या इसी दौरान हुई। हाल ही में बरेली में भी एक पत्रकार की हत्या कर दी गई थी। पश्चिम बंगाल की एक रैली के दौरान करीब बीस पत्रकारों पर हमला बोला गया।
कुल मिलाकर सरकार, नौकरशाहों, दबंगों, नेताओं की आलोचनात्मक खबरें लिखने का खामियाज़ा पत्रकारों को जान देकर या फिर हिंसा का सामना करके उठाना पड़ रहा है। इससे भी ज़्यादा चिंताजनक बात यह है कि किसी भी मामले में अपराधी पकड़े नहीं जा रहे।
शाहजहांपुर के जोगेंद्र यादव के मामले में समाजवादी पार्टी के एक नेता का नाम सामने आया। दरअसल इस नेता के खिलाफ जोगेंद्र सिंह ने खूब लिखा था। सो प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जोगेंद्र के पिता को बुलाकर तीस लाख का मुआवज़ा देकर उनका मुंह बंद कर दिया। अब परिवार ही उस आंदोलन के साथ नहीं था तो मंत्री पर कोई सवाल कैसे उठता?
पत्रकार एसोसिएशन लगातार पत्रकारों की सुरक्षा की मांग कर रही है। मगर इतनी मौतों के बाद भी एसोसिएशन की इस मांग को दरकिनार किया जा रहा है। जहां मुज़फ्फरनगर दंगों के मुख्य आरोपी भाजपा के सोम संगीत जैसे नेता को जे़ड प्लस सुरक्षा दी जाती है वहीं पत्रकारों के लिए प्रशासन और सरकार की चुप्पी खलती है।
पत्रकारों की सुरक्षा पर चुप प्रशासन और सरकार
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