जिला चित्रकूट, ब्लाक मऊ, गांव कोलमजरा हिंया रहै वाली कोमल 10 साल के उमर से बांस के डलिया बनावै का काम करत हवैं। या काम वा आपन सउख के कारन नहीं करत आय, बल्कि आपन बसोर जाति के कारन करत हवैं।
काहे से बसोर जाति का पुश्तैनी धंधा आय। मनसवा अउर मेहरिया दूनौ या काम करत हवैं।
कोमल का कहब हवै कि मोर माइका मध्यप्रदेश के मरारला गांव् मा हवैं। 10 साल के उमर से मैं डलिया बनावै का काम सीखे हौं। बचपन मा बाप महतारी अउर पड़ोसिन का डलिया बनावत देख के या काम सीख गंइव हौं।
अब आपन परिवार के खर्चा चलावै खातिर या काम करत हौं। परिवार मा मोर मनसवा अउर दुइ लड़का हवैं। मैं आपन मनसवा से नीक डलिया बनावत हौं। एक बांस मा दुइ से चार डलिया बनत हवैं। एक दिन मा एक डलिया बन के तैयार होत हवैं।
गांव गांव जा के डलिया बेचे का पड़त हवैं। घर से कोउ नहीं खरीदत आय। हमार परिवार मा डलिया बनाउब जरुरी हवैं। डलिया न बनाइहौं तौ हमैं निकल देहैं। काहे से परिवार के सब मेहरिया अउर मनसवा या काम करत हवैं।
रिपोर्टर- सुनीता
Published on Jan 6, 2017