सुप्रीम कोर्ट में केवल 6 महिलाओं ने न्यायाधीश पद की शपथ ली जिसमें से एक ही न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठी। साथ ही देश के सभी उच्च न्यायालयों के 24 न्यायाधीशों में से केवल 2 ही महिला न्यायाधीश हैं। पिछले 23 साल से सीनियर काउंसिल में 12.5 प्रतिशत ही महिलाएं हैं।
हाल ही में, लीगली इंण्डिया ने बताया कि बार काउंसिल में 2.8 प्रतिशत ही महिला सदस्य हैं, मतलब कि 12 बार काउंसिलों में से 8 बार काउंसिलों में एक भी महिला सदस्य नहीं है।
दिए गए आंकडे़ भारत की न्यायिक व्यवस्था की संरचना पर सवाल खड़े करते हैं। सेंटर आॅफ फेमिनिस्ट लीगल रिसर्च की निदशक रतना कपूर कहती हैं कि भारतीय न्यायापालिका में लिंग भेदभाव आज भी होता है। पुरूष असुरक्षा और बडी़ मात्रा में लिंग भेदभाव महिलाओं को वरिष्ठ वकील बनने में सबसे बड़ी बाधाएं हैं। 2006 से सीनियर बार काउंसिल में महिलाएं, मुंबई में 6 प्रतिशत और दिल्ली में 8 प्रतिशत चुनी र्गइं, जिसमें भी सबसे चौकाने वाली बात ये है कि न तो सुप्रीम कोर्ट और न हाई कोर्ट के पास ये डाटा उपलब्ध है कि कितनी महिलाओं ने वकील बनने के लिए आवेदन किया था।
सीनियर वकील बनाने वाले चुनाव पैनल में भी बहुत कम महिला न्यायाधीश हैं। नवम्बर 2015 में, सुप्रीम कोर्ट की वकील इंदिरा जैसिंग ने महिला चुनाव प्रक्रिया के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट, कानून मंत्रालय के बार काउंसिल, बार संघों और महान्यायावादी के खिलाफ जनहित याचिका भी दाखिल की थी।