जिला वाराणसी। बनारस में जिधर देखा उधर कुछ ना कुछ परेशानी कुछ ना कुछ दिक्कत जरूर नजर आ जाई। अगर कउनों काम होत हव त उ अधूरा में पड़ल हव। एक योजना पुरा नाहीं होत हव कि दूसर योजना निकल जात हव। इ आलम बनारस के शहर से लेके बनारस के गावं के गली तक हव।
गावं में तरह तरह के आवास, शौचालय, वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन आसउर बहुत सी योजना चलत हव। लेकिन कहीं भी इ ना सुने केब मिली की हमने के आवास मिल गएल हव या हमने के शौचालय मिल गएल हव या तो हमने के पेंशन मिल गएल हव। हर गावं में हर तरह के दिक्कत पड़ल हव।
एक बात समझ में नाहीं आवत हव हिक जब सरकार के तरफ से योजना पर योजना निकलल हव त उ सब योजना के होत का हव। कुछ भी होए आफत तो जनता के झेले के पड़त हव। सरकार के भी अपने योजना के सही तरह से चले देवे खातिर आउर जनता के एकर ठीक से फायदा पहुचत हव कि नाहीं एकर निष्पक्ष जंाच खातिर के थोड़ा सख्ती से कदम उठावे के पड़ी। सरकार के तरह तरह के योजना के कउन फायदा। जउन ना तो जनता के मिल पावत हव आउर ना सरकार ओके पूरा कर पावत हव?
नेता के बीच में पीसात जनता
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