जिला महोबा, ब्लाक कबरई, गांव छांनी कला। यहां की पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष अंशु शिवहरे दोबारा जिला पंचायत सदस्य की उम्मीदवारी का पर्चा भर गांव में प्रचार प्रसार के लिए अपने राजनीतिक अंदाज और तेवरों के साथ निकलीं।
कबरई ब्लाक के कैमहा गांव में हम उनकी प्रचार टीम के साथ जुड़े। तेज तेज कदमों से चलतीं अंशु और उनकी टीम की नजर पोस्टर लगी दीवारों पर थी। अंशु शिवहरे बार बार इस बात पर एतराज जता रही थीं कि उनके पोस्टर के उप पोस्टर लगाना नाजायज है। भले ही वह पंचायत स्तर के चुनाव लड़ रहीं हों लेकिन वह इन चुनावों में प्रचार प्रसार के तरीकों के जरिए राज्य स्तर के चुनावों के बारे में भी टिप्पणी कर रही थीं। उन्होंने कहा कि आजकल की राजनीति दूसरों को नीचा दिखाने की राजनीति है। अंशु बड़ी रफ्तार के साथ एक घर से दूसरे घर में घुसती है मिलते ही किसी मंझी हुई राजनेता की तरह लोगों से बर्ताव करती है। रिश्ते बनाने में माहिर अंशु किसी को दीदी किसी को चाची किसी को दादी और मामी कहकर उनसे वोट देने के लिए कहती हैं। चुनाव चिन्ह कप प्लेट याद दिलाते हुए बड़े मजे से कहती हैं आप हमें जिताइये हम आपको चाए पिलाएंगे। लोग भी इस मौके को गंवाना नहीं चाहते और अपनी शिकायतें करते। अंशु अपने साथ चल रहे आनंद नाम के लड़के को बुलाती और झट से समस्या नोट करवा देती। उसकी फुर्ती से साफ दिख रहा था कि वह एक अनुभवी नेता है।
हमारे सवाल उनके जवाब
वह क्यों खड़ी हुई?
राजनीती के लिए, जन संपर्क के लिए। पर कभी यह प्लान नहीं था कि राजनीती में आऊँगी। पढ़ाई बीएससी, बीएड एमएसडब्लू है। इंजीनियर बनना चाहती थी, या फिर टीचर। पिछले पंचवर्षीय में मेरे पति से लोगों ने बोला कि वो खड़े हों, पर महिला सीट थी, तो खड़ा किया। जब मेरे पति थे तो जि़ला का काम मैं करती थी, और क्षेत्र में घूमना, लोगों से मिलने वाला काम वो करते। उनसे मैंने सीखा कि मीटिंग कैसे करनी है, भाषण कैसे देने हैं। धीरे-धीरे अपने से मीटिंग करती थी।
महिलाओं और पुरुषों की राजीनीति में क्या फरक हैं ?
पुरुष गन्दी राजनीती करते हैं-झूठे आरोप, केस करवाना, पैसों का लेन देन। मेरे राजनीति में जो फरक है -मैं काम करवाती हूं। लोगों से उनकी जरूरतें पूछती हूं। मेरी सिंपल राजनीति है-विकास की राजनीती। इलाके की महिलाएं अपने से खड़ी नहीं हो पाती हैं। दबती हैं, इसका मुख्य कारण शिक्षा न होना।