जिला बांदा, ब्लाक बिसण्डा, गांव तेन्दुरा। यहां के दलित किसान की सात बीघा खेती की फसल बर्बाद हो गई। पूरी खेती में से ज्यादातर खेती बाप के नाम थी जबकि कुछ खेती मां के नाम थी। इसके बदले में सरकार की तरफ से कुल सात बीघा खेती पर मुआवजे के तौर पर दो चेक मिले। एक बाहत्तर सौ रुपए और दूसरा पंद्रह सौ रुपए का। राम नारायण ने पंद्रह सौ का चेक वापस कर दिया। उसका कहना है कि खेती में हुए नुकसान के मुकाबले यह बहुत कम है।
दरअसल 14 मई को रामनारायण बिजली के टावर पर चढ़ गया था। उसने कहा था कि अगर उसे मुआवजा नहीं मिला तो वह जान दे देगा। प्रशासन ने पहुंचकर उसे जल्द मुआवजा देने का भरोसा दिया।
रामनारायण ने ग्यारह बीघा खेती बटाई में भी ली थी। उसने साहुकार से करीब दो लाख कर्ज लेकर खुद की खेती और और बटाई में ली गई खेती के लिए बीज-पानी और मजदूर की व्यवस्था की थी। इसी सदमे में उसने आत्महत्या की कोशिश भी की। रामनारायण ने बाताय कि उसे 2012 और 2014 में सूखे और बरसात से बर्बाद हुई फसलों का मुआवजा भी नहीं मिला है।
खेती में हुए नुकसान का अंदाजा लगाएं तो एक बीघे में औसतन पांच कुंटल अनाज पैदा होना चाहिए। यानी कुल मिलाकर सात बीघा में पैंतिस कुंटल अनाज पैदा होना चाहिए। रामनारायण के खेत में चना, गेहूं, सरसों और बिजरी की फसल लगी थी। बेमौसम बरसात के कारण उसे कुल मिलाकर इससे मात्र चालीस पचास किलो ही अनाज मिला।
अगर गेहूं का भाव देखें तो जिले में करीब अट्ठारह सौ रुपए प्रति कुंटल है। जबकि सरसों पच्चीस सौ, चना उससे भी महंगा होता है। ऐसे में सात बीघे का कम से कम औसत नुकसान भी एक लाख रुपए के करीब पहुंच जाएगा।