देश में निजता के अधिकार को हरी झंडी मिल गई है। नौ न्यायाधीशों की सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सहमति से निजता को मौलिक अधिकार बताया। इस संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर, न्यायाधीश जे. चेल्मेश्वर, न्यायाधीश एस. ए. बोबडे, न्यायाधीश आर.के. अग्रवाल, न्यायाधीश आर.एफ. नरीमन, न्यायाधीश ए.एम. सप्रे, न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायाधीश एस.के. कौल और न्यायाधीश एस अब्दुल नजीर शामिल थे।
पीठ ने निजता के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है। पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के दो पुराने फैसलों को खारिज कर दिया, जिनमें निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना गया था। 1954 में एमपी शर्मा मामला और 1962 में खड़ग सिंह मामला में फैसला सुनाया था।
एलजीबीटी समुदाय के लिए ‘निजता मौलिक अधिकार’ के मायनों पर कोर्ट लेगी अहम फैसला!
सरकार आधार कार्ड को अनिवार्य करके कहीं न कहीं लोगों की बायोमेट्रिक जानकारी को प्राप्त कर रही थी। आजकल बहुत से मोबाइल ऐप डाउनलोड करते हैं, तो कई सारी आपसे जुड़ी जानकारियां कम्पनियों के पास चली जाती है। हालांकि आधार से जुड़ी कुछ संवेदनशील सूचनाओं के लीक होने की खबरें भी आ चुकी हैं, जब आधार योजना के बारे में ये खबर आने लगी तो याचिकाकर्त्ताओं ने इसे गोपनीयता के अधिकार का हनन कहा। केन्द्रीय सरकार ने कहा कि ये गोपनीयता मौलिक अधिकार नहीं है। इसतरह से ये निजता की बहस शुरू हो गई।
निजता को मौलिक अधिकार मानने के बाद 377 धारा अब गैरकानूनी नहीं रही क्योंकि ये किसी व्यक्ति की निजता से जुड़ा सवाल है। इसके साथ ही लोगों के उनकी पसंद के खाने पर भी नियंत्रण को रोका जा सकता हैं। देश में बीफ बैन है, जिसके चलते ही देश भर में कई बुचड़खाने बंद किए गए थे। इस फैसले के साथ ही न्यायाधीश जे. चेल्मेश्वर ने कहा कि भोजन पर जबरदस्ती नहीं की जा सकती। किसी को पसंद नहीं आएगा कि सरकार उसे बताए कि वह क्या खाए और क्या पहने। निजता को मौलिक अधिकार मानने का फैसला ऐतिहासिक हैं और आने वाले दिनों में इसके दुरगामी परिमाण होंगे।