अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी इन दिनों भारत में हैं। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास मॉडल की तारीफ करते वह नहीं थक रहे हैं। हालांकि अमेरिका ने पहले मोदी को वीजा देने से मना कर दिया था। उस समय गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी की भूमिका को लेकर अमेरिका ने भी सवाल उठाए थे। इसका मतलब साफ है कि पहले अमेरिका नहीं चाहता था कि मोदी वहां जाएं। आखिर इन दो तीन महीनों में ऐसा क्या हो गया कि मोदी का घोर आलोचक अमेरिका मोदी का प्रशंसक बन गया।
यहां पर एक कहावत सटीक बैठती है। राजनीति में कोई किसी का दुश्मन या दोस्त नहीं होता। राजनीति मौकापरस्ती का नाम है। बल्कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी नई सरकार की नीतियों से जुड़े हैं। भारत अमेरिका के लिए एक बाजार है। जहां अपना पैसा खर्च कर मुनाफा कमाने के बहुत मौके हैं। नया बजट पेश होने के बाद से तो मौके और बढ़ गए हैं। नई सरकार ने रक्षा, ऊर्जा और बुनियादी ढांचे में निवेश के लिए रास्ता खोल दिया है। मैट्रो रेल, बुलेट ट्रेन, यहां तक कि परंपरागत भारतीय रेल में भी अब दूसरे देश अपना पैसा लगा सकेंगे। यह बिल्कुल वैसा ही जैसे कोई व्यापारी अपना पैसा किसी काम में लगाए और फिर उससे मुनाफा कमाए। हथियार बनाने और ऊर्जा के क्षेत्र में अमेरिका हमेशा से भारत में संभावनाएं तलाशता रहा है। अमेरिका समेत अन्य देशों के भारत में पैसा लगाना फायदेमंद है। लेकिन भारत को ऐसे में व्यापार की शर्तों को तय करते वक्त देखना होगा कि फायदा भारत और दूसरे देश को लगभग बराबर मिले। भारत के भीतर भी फायदे की मलाई किसी एक तबके तक सीमित न रहे। निचले तबकों तक भी पहुंचे। खास तौर पर गरीब और ग्रामीण जनता के हित नजरअंदाज न हों।
निचले तबके न हों नज़रअंदाज़
पिछला लेख