देश भर में आठ मार्च की तैयारियां चल रही हैं। चुप्पी तोड़ो – महिला दिवस पर यह नारा हर संस्था लगाती है। बाँदा के एक गाँव की सरोज ने अपनी चुप्पी तोड़ी है। उसने अतर्रा की संस्था विद्याधाम समिति के संचालक राजा भइया यादव के खिलाफ बलात्कार और शारीरिक शोषण का आरोप लगाया है। आज सरोज डरी-सहमी है। ’नारी नहीं तू नागिन है तेरे कर्म कलंकित हैं’ – बाँदा शहर की एक रैली में उसके खिलाफ ऐसे नारे लगाए गए। तीस गाँव के लोगों ने उसके खिलाफ यह रैली निकाली जिसमें उसके चाल-चलन पर टिप्पणी की गई।
1999 में चित्रकूट के कर्वी शहर में इला पांडे ने भी अपनी चुप्पी तोड़ी थी। उसने अपने पति जगदीश पांडे के खिलाफ शिकायत की थी अपनी ही बेटियों के साथ यौन शोषण करने की। इला ने अपनी शिकायत वनांगना नाम की महिला संस्था से की। कर्वी शहर में इला और वनांगना संस्था के खिलाफ एक रैली निकाली गई। कर्वी के चैराहे में संस्था की महिला कार्यकर्ताओं के खिलाफ नारेबाजी की गई।
सरोज और इला ने न्याय की मांग करने के लिए चुप्पी तोड़ी। लेकिन हजारों महिलाएं हैं जो कुछ भी बोल नहीं पाती हैं। खासकर ऐसी स्थिति में जहां शोषण करने वाला पुरुष परिवार या संस्था का मुखिया हो।
सरोज ने 25 फरवरी को अतर्रा थाना में रिपोर्ट लिखवाकर कार्यवाही करने की मांग की है। उसका कहना है कि वह 2014 से विद्याधाम समिति में काम कर रही थी। राजा भइया अक्सर आफिस में रात को रूकने की बात करते थे। वह उनकी बात मान गई क्योंकि उसे भी काम की जरूरत थी, परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी।
सरोज के अनुसार काम की शुरूआत किए 20 दिन ही हुए थे कि राजा भइया ने उससे अश्लील बाते करने लगा -’तुम ससुराल भी नहीं जाती हो। हर लडकी की कुछ जरूरतें होती हैं। जब वह जरूरतें पूरी नहीं होती हैं तो दिमाग काम नहीं करता है’। सरोज ने बताया कि एक दिन वह आफिस के हाल में ही सो रही थी तो रात में राजा भइया ने उसके साथ बलात्कार किया। जब सरोज ने मना किया तो बोला कि तेरा अश्लील विडियो मेरे पास है अगर किसी को बताया तो पूरे बाजार में दिखा दूंगा। इज्जत तो लड़कियों की जाती है, हम तो मर्द हैं हमारा तो कुछ भी होने वाला नहीं है। सरोज के अनुसार इस डर से वो एक साल तक शारीरिक और मानसिक शोषण सहती गई। वह उसे बंधुआ मजदूर की तरह आफिस में रखता था। घर का झाडू-पोछा, बर्तन और चाय बनाना, उसका माकन बन रहा था तो ईंटा गारा का काम भी सरोज से करवाता था। एक बार सरोज ने उसका कहना नहीं माना तो उसने काम से निकाल दिया। जब सरोज नौकरी की तलाश करने लगी तो राजा भइया ने फिर से दबाव देकर बुला लिया। और वह ऐसे प्रताडि़त करने लगा कि सरोज का खाना, पीना, सोना, रहना सब कुछ हराम कर दिया।
25 फरवरी को सरोज ने अतर्रा थाना में राजा भइया के खिलाफ रिर्पोट दर्ज करवाई है। 26 फरवरी को विद्याधाम समिति के कार्यकर्ताओं ने संस्था के लोगों ने सरोज के खिलाफ रैली निकाली। सरोज के अनुसार फेसबुक पर भी उसे धमकियां मिल रही हैं केस वापस लेने के लिए।
सरोज के पक्ष में उतरे गांव के किसान। 27 फरवरी को भारतीय किसान यूनियन के लोगों ने राजा भइया को सजा देने की मांग की है। बुंदेलखण्ड की एक नारीवादी संस्था की वरिष्ठ कार्यकर्ता के अनुसार विद्याधाम समिति में पहले भी राजा भइया द्वारा शोषण की वजह से अन्य लड़कियां काम छोड़ चुकी हैं।
बाँदा में सरोज के मुद्दे पर गहमा- गहमी और बहस जारी है। लेकिन क्या आज काम की जगह में औरतें कितनी सुरक्षित हैं? यह सवाल राजधानी दिल्ली जैसे शहरों से लेकर बाँदा जैसे कस्बों तक उठ रहा है। संस्था के प्रमुख अपने बचाव के लिए अपनी पूरी सत्ता इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में कानून में चुप्पी तोड़ने वाली औरतों की सुरक्षा के लिए कोई मंच या प्रावधान नहीं हैं। आठ मार्च में इस मुद्दे पर भी चर्चा की जरूरत है।
नारी नहीं तू नागिन हैः बांदा में पीडि़त महिला को गाली, आरोपी को सुरक्षा
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