अगर बनारस के सरकारी सबसे बड़ा आउर सबसे मशहूर अस्पताल के नाम लेवे के होई त जुबान पर सबसे पहिला नाम आई कबीर चैरा अस्पताल के। गरीबन के बिना पइसा के इलाज होई। लेकिन इहां पर जेकरे पास पइसा नाहीं हव ओकर इलाज नाहीं होत हव। बस इ नाम के ही हव।
चैबेपुर से सुनीता, लहरतारा से अमृता, पड़ाव से संगीता, सिन्धोरा से सोनी इ सब लोगन के कहब हव कि अगर हमने के पास पइसा रहत त हमने एतना दूर का करे आइत। डिलीवरी करवावे खातिर के हमने सोचीला कि हमने के पास पइसा नाहीं हव त इलाज हो जाई। लेकिन इहां पर केहू से 500 केहू से 600 रूपिया एक डिलीवरी पर लेत हईन। अगर कहल जाई कि पइसा नाहीं हव त कहियन कि पइसा देबू त डिलीवरी करवाइब। नाहीं त हम नाहीं जानीत। हमने त अपने सुविधा खातिर के इहां आइला लेकिन इहां बिना पइसा लेले हाथ नाहीं लगइतिन। जेकरे पास पइसा हव उ अस्पताल में आई। बिना पइसा वाले इहां ना अहियन। बस नाम हव कि इ अस्पताल में फ्री में इलाज होई। पइसा लेहियन आउर कहियन कि कोई से कहे मत। हमने डर के मारे कोई से कहित नाहीं कि कहीं हमने के मरीज के कुछ ना होए।
के सिस्टर के कहब हव कि पइसा के लेन देन जे करत हव उ करत हव। हमके पइसा कोई नाहीं देत हव। नात हम कोई से लेत हई।
नाम भर हव सरकारी इलाज
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