जिला वाराणसी। सरकार तरह तरह के योजना के वादा करला। गरीब लोग के गेहूं मिली, चावल मिली, मिट्टी के तेल मिली। तमाम चीज मिली लेकिन जब गरीब लोग के पास जाके पता करा तो पता चलला कि कुछ मिलत नाहीं हव आउर अगर मिलत भी हव तो आधा अधूरा।
सरकार ढिढोरा पीटला कि गरीब लोग के खाद्य सुरक्षा के कमी पर ज्यादा से ज्यादा धियान देल जात हव। लेकिन पूरे बनारस में अइसन कउनों गावं ना होई जहां राशन खातिर लोगन के परेशानी ना उठावे के पड़त हव। कहीं तीन महीना में राशन मिली तो कहीं चार महीना में। मिले के दस किलो तो मिली आठ किलो। ढाई लीटर मिट्टी के तेल मिले के चाही लेकिन मिली दू लीटर आउर कार्ड पर चढ़इयन ढाई लीटर। कहले पर कार्ड आउर डिब्बा उठा के फेंक देहियन। भवानीपुर, बहरामपुर, गोपपुर, उदयपुर गावं के शान्ति, रीता, रामलोचन, सरिता देवी समेत कई लोग के कहब हव कि हमने के दू लीटर मिट्टी के तेल मिलला। जब कहल जाई त हमने के डिब्बा उठाके फेंक देहियन। हमने के एतना भी तेल नाहीं मिलत की महीना भर चल सके। मोल चालीस रूपिया लीटर के खरीद के दिया जलावल जाई नाहीं त अंधेरा में रहे के होला।
सरकार के तमाम योजना के कउन फायदा हव। जब गरीब के मिलते नाहीं हव? जेकरे खातिर योजना बनल हव अगर वही के ना मिली तो का मतलब रह जाई योजना के?