सौ प्रतिशत वोट परैं का ढिंढौरा पीटैं वाला शासन प्रशासन केतना सफल होई पावा है या कोहू से छिपा निहाय। सौ-सौ प्रतिशत वोट परैं के बात तौ कीन जात है, पै सौ प्रतिशत वोट काहे नहीं पर पावत। या बारे मा कउनौ नहीं करैं चाहत आय। काहे से अगर बात कीन जई तौ शासन-प्रशासन के कमी के पोल खुल जई।
30 अप्रैल 2014 का परैं वाले वोट के बात कीन जाय तौ बांदा जिला मा लगभग पचपन प्रतिशत वोट परा है। यतना कम वोट परैं का जिम्मेदार सिर्फ मतदाता (वोट डालै वाले मड़ई) का ही नहीं कहा जा सकत कि उंई वोट नहीं डाल पाइन आय या फेर डालैं ही नहीं गें आय। सच्चाई तौ या बात के भी है कि मतदातान का वोट डालैं वाली पर्ची ही नहीं मिल पाई आय। भूखे पियासे अउर धूप के लपट खात मड़ई वोट डालै खातिर दिन भर परेशान भे हैं।
परदेश मा कमाई करैं वाले बहुतै मड़ई वोट डालैं खातिर आये रहैं तौ उनका दोहरा नुकसान भा है। इनके नुकसान का जिम्मेदार शासन-प्रशासन केहिका मानत है। अपने का या फेर मतदाता का? वोट डालब मतदाता का अधिकार अउर कर्तव्य का पाठ पढ़ावा जात है, पै या पाठ प्रशासन का काहे नहीं पढ़ावा जात आय? काहे से वोट का अधिकार अउर कर्तव्य मान के वोट डाल के कर्तव्य निभावत हंै, पै प्रशासन आपन कर्तव्य निभावैं मा काहे पीछे हटत है? अगर यहिनतान कीन जई तौ का सौ प्रतिशत वोट परैं का ढिंढोरा सफल होई सकत है?
नाकाम होइगा सौ प्रतिशत वोट का ढिंढोरा
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