उत्तर-प्रदेश में कुम्हारो की आज बहुत दयनीय स्थिति है। पहले मिट्टी के बर्तनों का बहुत महत्व था लेकिन अब बहुत कम हो गया है। और लोग उसे खरीदना नहीं चाहते। इसकी मांग एकदम बन्द हो गई है क्योंकि लोग फाइबर के बर्तन का उपयोग करने लगे हैं। पहले दीपावली पर सामान बेंचके उन लोग का साल भरके खाने का हो जाता था। तरह-तरह के बर्तन, बच्चों के खिलौने बनाकर घर-घर बेंचते थे उसके बदले में लोग पैसा, गेहूं चावल देते थे। जिससे उनका जीवन यापन होता था।
षादी ब्याह के लिए कुल्हड़ बनाने के लिए आर्डर देना होता था। जिससे इनकी कमाई होती थी। लेकिन अब समय बदल गया। लोग उसी को ठीक समझते हैं। जिससे कमाई नहीं हो पाती। इतनी मेहनत से बनाते हैं और न बिकने के कारण सब खराब जाता है। उदाहरण के लिए तारुन ब्लाक विजैनपुर सजहरा गांव के षिवदयाल बताते हैं कि पहले वाली बात अब नहीं रही। अब जमाना बदल गया है इसमें खाने भर की कमाई नहीं हो पाती है। इसलिए पुस्तैनी काम छोड़कर लोग रोजी रोटी के लिए बाहर जा रहे हैं पर हम तो चाहते हैं कि ये हमारा पुस्तैनी काम है। इसको बन्द नहीं करना चाहिए।
नहीं रही पहले वाली बात
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