मुंबई। गायिका शमषाद बेगम ने 23 अप्रैल 2013 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन वो अपने सुरों की गूंज हमारे बीच छोड़ गईं। उन्होंने पांच सौ गाने गाए। आइए मिलकर जानें उनसे जुड़ी कुछ खास बातें।
शमषाद बेगम ने गायन की शुरुआत रेडियो से की। उनकी पहली हिंदी फिल्म ‘खजांची’ थी। फिल्म के सारे 9 गाने शमषाद ने गाए। 1947 को पेषावर रेडियो के लिए गाना सुनकरे गीतकार ओ.पी. नैय्यर काफी प्रभावित हुए और उन्हें अपनी फिल्म में गाने का मौका दिया।
नए जमाने में शमषाद बेगम के जितने गानों के रिमिक्स यानी बोल वही पर धुन और तर्ज नई बनें। ‘सैंया दिल में आना रे’, ‘कजरा मोहब्बत वाला’, ‘कभी आर कभी पार’ जैसे गानों के रिमिक्स काफी पसंद किए गए। शमषाद बेगम को इन रिमिक्स पर कोई एतराज नहीं रहा। वो इन्हें वक्त की मांग मानती थीं।
शमषाद ने पष्चिमी धुन पर आधारित गाने भी गाए। 1964 में आई फिल्म शहनाई का गाना ‘आना मेरी जान संडे के संडे’ गाकर धूम मचा दी। ये उनका पहला पष्चिमी धुन पर आधारित गाना था।
उन्होंने ‘तेरी महफिल में किस्मत आजमा के’ (मुगल ए आजम), ‘मेरे पिया गए रंगून’, ‘कहीं पे निगाहें कहीं पे निषाना’, ‘लेके पहला-पहला प्यार’ (सीआईडी), ‘रेषमी सलवार कुर्ता जाली का’, ‘कभी आर कभी पार’, ‘सैंया दिल में आना रे’ और ‘कजरा मोहब्बत वाला’ (किस्मत) जैसे सदाबहार गाने गाए। उनकी आवाज़ और उस आवाज़ से जुड़ी ये धुनें उन्हें संगीत प्रेमियों के दिलों में हमेषा जि़ंदा रखेंगी।
नहीं रहीं शमशाद पर रहेंगे उनके गीत
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