जिला बांदा, ब्लाक तिन्दवारी, गांव पपरेंदा। इस गांव की रहने वाली कमला इस समय गर्भवती हैं, जबकि उनकी नसबंदी दिसंबर 2011 में हो चुकी है। कमला ने बताया कि दिसंबर 2011 में मेरे गांव की आशा गुड़िया ने मुझे नसबंदी कराने की सलाह दी। गुड़िया ने बताया कि नसबंदी कराने पर मुझे पांच हजार रुपए भी मिलेंगे। मैंने 8 दिसंबर 2011 में बिसंडा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में नसंबदी करा ली। लेकिन नसबंदी के दो साल बाद मैं फिर से गर्भवती हो गई। नसबंदी कराने मेरे साथ आशा भी गई थी। लेकिन वह कोई ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। इस मामले को लेकर जब आशा से पूछताछ की गई तो उसने कहा कि वह प्राथमिक केंद्र में नसबंदी कराने गई थी, इसलिए मेरी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है।
बड़ोखर खुर्द ब्लाक गांव मटौंध मजरा चमरहा। प्यारेलाल की औरत गिरजा बताती है कि 10 नवम्बर 2008 में उसने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र मटौंध में नसबंदी कराई थी। अब उसे तीन महीने का गर्भ है। सी.एम.ओ. को दरखास देकर मुआवजे़ की मांग की है। मटौंध फार्मासिस्ट का कहना है कि नसबंदी होने के समय लिखा लिया जाता है कि बच्चा होने पर अस्पताल स्टाफ की कोई ज़िम्मेदारी नहीं होगी। डिप्टी सी.एम.ओ. अशोक कुमार सिंह का कहना है कि वह जांच करेगें और उचित मुआवज़ा दिया जाएगा।
सी.एम.ओ. ने कहा कि बहुत सारी नसबंदियां फेल हो जाती हैं। नसबंदी के तीन महीनों बाद अगर महिला गर्भवती होती है। तो तीस हज़ार रुपए मुआवज़ा मिलता है। हालांकि अब तक मेरे पास नसबंदी फेल होने का कोई केस नहीं आया है।