सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ में आईपीसी की धारा 377 को रद्द करने की मांग पर सुनवाई जारी है। बता दें, धारा 377 ‘अप्राकृतिक अपराधों’ से संबंधित है, इस धारा 377 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पांच जजों की पीठ सुनवाई कर रही है।
इससे पहले, पीठ ने सुनवाई स्थगित करने के केंद्र के अनुरोध को ठुकरा दिया था। केंद्र सरकार ने कहा था कि समलैंगिक संबंधों पर जनहित याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए और वक्त चाहिए। इस पर पीठ ने कहा, ‘इसे स्थगित नहीं किया जाएगा।’
पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘लिंग और सेक्सुअल ओरिएंटेशन दो अलग-अलग चीजें हैं। इन दो मुद्दों को मिश्रित नहीं किया जाना चाहिए। यह पसंद का सवाल नहीं है।’
उन्होंने कहा, ‘हम कह रहे हैं कि गे या लेस्बियन होना पसंद का विकल्प नहीं है। आप इसके साथ पैदा हुए हैं। यह सहज है इसलिए आप अपने लिंग के बहुमत से पसंद के मामलों में अलग-अलग प्रतिक्रिया करते हैं।’
सीजेआई ने कहा कि आज सवाल यह है कि धारा 377 आपराधिक है या नहीं। उन्होंने कहा, ‘पहले धारा 377 को असंवैधानिक घोषित किया जाना होगा। यदि अन्य अधिकार सामने आते हैं तो उनको बाद में देखा जाएगा। न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि मौलिक अधिकारों पर बहस होगी।
सीजेआई ने पूछा, ‘अगर हम धारा 377 खत्म करते हैं, तो अगला सवाल यह होगा कि क्या वे शादी कर सकते हैं या लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं।’ इस पर रोहतगी ने कहा, ‘यदि कोई लिव-इन में है, तो लिव-इन पार्टनर को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत संपत्ति पर अधिकार मिलते हैं।