समलैंगिकता को अपराध मानने वाली भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। इस बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस बात से नाराज है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ कार्यकर्ता इस मामले पर अदालत के पास जाने की बात कही है। वहीं, मुस्लिमों के सबसे बड़े सामाजिक धार्मिक संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद के महासना महमूद मदानी ने कहा कि इस फैसले से यौन अपराधों की घटनाएं ज्यादा पैदा हो जाएंगी।
इससे पहले, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा था कि यदि सुप्रीम कोर्ट समलैंगिकता पर लगे बैन को हटा भी देती है तो वह अपने स्तर पर इस कानून को बरकरार रखने का कोई प्रयास नहीं करेगा। बोर्ड ने कहा था कि धारा 377 की सुनवाई में हमारी कोई हिस्सेदारी नहीं होगी।
अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एक वकील और एक सदस्य कमल फारूकी ने कहा, “यह समाज को नष्ट कर देगा, यह देश की संस्कृति को नष्ट कर देगा और तब व्यक्तिगत रूप से नहीं बल्कि देश के सभी नागरिकों की तरफ से मुस्लिम लॉ बोर्ड लड़ेगा।”
उन्होंने कहा, “उन्होंने कहा कि वो जल्द ही इसके लिए कोर्ट के पास जायेंगे और अपना पक्ष रखेंगे। ये इस्लाम के खिलाफ है, कुरान में इसके खिलाफ एक पूरा अध्ध्याय है, अगर ये बना रहा तो 100 साल बाद मानवता खत्म हो जाएगी।”