26 मई को मोदी सरकार के दो साल पूरे हो गये। आज फिर एक बार नरेन्द्र मोदी के प्रचार-प्रसार की आंधी अख़बारों, टीवी चैनलों, सोशल मीडिया और गांव-शहरों में चल रही है। ऐसे ही प्रचार के तूफ़ान ने भाजपा को 2014 में भारी बहुमत से केंद्र सरकार की कुर्सी तक पहुँचाया था। इस शनिवार को भाजपा का ‘मेगा शो’ दिल्ली में होगा। इतना ही नहीं भाजपा के मंत्री देश के 198 शहरों का दौरा करेंगे ताकि सरकार की योजनायें और सफलताएँ लोगों तक पहुँच सके। मोदी सरकार के संदेश में भी बदलाव आ चूका है- ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ से ‘मेरा भारत बदल रहा हैं, आगे बढ़ रहा हैं’ हो गया हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी सरकार के दो सालों में अर्थव्यवस्था के हालात बेहतर हुए हैं। मुद्रास्फीति कम हुई हैं और सकल देशी उत्पाद बढ़ा हैं। अर्थव्यवस्था के 12 सूचक में से 8 सूचक में सरकार ने बेहतर किया हैं। भारत ने चीन से भी बेहतर आर्थिक प्रदर्शन किया है, जिसके कारण फिलहाल भारत को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का खि़ताब मिला हैं। लेकिन इस बढ़ती अर्थव्यवस्था के लाभ लेने वाले कौन लोग हैं? सूखे से जूझते किसान या महीनों से बिना वेतन के काम करती आंगनबाड़ी की महिलाएं? या भारत के उद्योगपति या लाखों की संख्या में खड़े बेरोजगार नौजवान? भाजपा सरकार के दो साल हुए नहीं की इन्होने 2019 में होने वाले चुनावों की बात छेड़ दी है। नरेन्द्र मोदी ने जितनी रूचि राज्यों के चुनाव प्रचार में दिखाई है, उतनी रूचि कभी शासन चलाने में नहीं दिखाई। जितनी रूचि प्रधानमंत्री विदेश यात्रा में लेते हैं उतनी रूचि उन्होंने सूखा-ग्रस्त इलाकों का दौरा करने में नहीं दिखाई। जबकि भारत के तैंतीस करोड़ लोग सूखे परेशान हैं। दरअसल, बात देश के आर्थिक हालात के साथ-साथ देश के विचारों की है। हमारे देश के वित्तीय हालात भले ही बेहतर हुए हैं, लेकिन हमारे मानसिक हालात पर कई सवाल हैं। पिछले दो सालों में दलितों, अल्पसंख्यक समुदायों, छात्रों, प्रख्यात लेखकों और साहित्यकारों के खिलाफ हुए हादसों पर मोदी सरकार, खासकर प्रधानमंत्री मौन व्रत रख लेते हैं जबकि क्रिकेट मैच जीत जाने पर टीम को बधाई देते फिरते हैं।
भाजपा के मंत्री और सदस्यों ने राज्यों में चुनाव से पहले और उप-चुनावों से पहले खुलकर द्वेषपूर्ण भाषण दिया है। जो खास कर अल्पसंख्यक और महिलाओं के खिलाफ रहे हैं। इतना ही नहीं, भाजपा की विचारधारा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हाथ बढ़ता हुआ नज़र आता है। इसका प्रभाव सबसे ज्यादा सोशल मीडिया में देखने को मिलता है जहाँ भाजपा, आर.एस.एस. और मोदी के ‘भक्तों’ ने ज़हर फैला रखा है। इन्ही लोगों ने राष्ट्रवाद को एक नया, भयंकर रूप दिया है। भाजपा और आर.एस.एस के भारत में न जवाहरलाल नेहरु के लिए जगह है, न मुसलमानों के लिए, न गांधी के लिए और न ही ईसाईयों के लिए। यह सिर्फ हिंदुत्व लोगों का भारत बनाना चाहते हैं जिसे धीरे-धीरे अमलीजामा पहनाया जा रहा है।
दो साल, बुरा हाल… सिर्फ भाषण, कहां है शासन?
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