राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 2015-16 के अनुसार देश की 7 में से 1 महिला को प्रसव पूर्व देखभाल नहीं मिल पाती है, इनमें से भी आधी महिलाओं को ये देखभाल परिवार के कारण नहीं मिल पाती है, क्योंकि परिवार इस देखभाल को जरुरी नहीं समझते हैं। गर्भवती महिलाओं को उच्च रक्तचाप, मधुमेह, आयरन और फोलिक एसिड की गोलियां देने के साथ गर्भावस्था के दौरान आहार, प्रसव देखभाल की व्यवस्था की जाती है। ये व्यवस्था प्रशिक्षित डॉक्टर, नर्स और दाईयों के द्वारा दी जाती है।
देश के गांवों में 16.7 प्रतिशत महिलाओं को प्रसव पूर्व देखभाल मिलती है, वहीं शहरों में ये संख्या 31.1 प्रतिशत महिलाओं को ये प्राप्त होती है। प्रसव पूर्व देखभाल में एक टिटनेस के इंजेक्शन, आयरन, फोलिक एसिड की दवा देना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार गर्भवती महिला को चार बार प्रसव पूर्व देखभाल के लिए स्वास्थ्य केन्द्र जाना चाहिए, जिसमें पहली देखभाल तो गर्भ धारण के शुरुआती 3 महीने के अन्दर होनी चाहिए।
26 प्रतिशत पुरुष को लगता है कि गर्भावस्था के दौरान प्रसव पूर्व देखभाल की आवश्यकता नहीं है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के अनुसार शहरों में 14.7 प्रतिशत महिलाएं श्रम शक्ति है, जो गांवों में 24 प्रतिशत है। परिवार में निर्णय लेने की क्षमता का प्रतिशत देखें तो 12 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि वे अपने स्वास्थ्य से सम्बंधित निर्णय खुद लेती हैं, जबकि 22.6 प्रतिशत महिलाओं के पति और 62.5 प्रतिशत महिलाओं ने पति के साथ मिलकर अपने स्वास्थ्य सम्बंधित निर्णय लिए थे।
शिक्षा का सुधार, धन उपार्जन में बढ़ती महिलाओं की भागीदारी स्वास्थ्य से जुड़े निर्णयों में उनके विचार को बढ़ा दिया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, प्रसव पूर्व देखभाल के दौरान गांवों में 63 प्रतिशत पुरुष मौजूद थे, जबकि 76.9 प्रतिशत पुरुष शहरों में इस दौरान मौजूद थे।
प्रसव पूर्व देखभाल क्यों जरुरी है, क्योंकि 30.3 प्रतिशत भारतीय महिलाएं आयरन और फोलिक एसिड को जरुरत होने पर देते हैं, जबकि 50.3 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं और 58.4 प्रतिशत शिशु (6से 59 महीनों के) खून की कमी के कारण मरते हैं। भारत में 1 हजार जन्मे बच्चों में से 34 शिशु मृत्यु होती हैं। ये संख्या ब्रिक्स देशों में सबसे ज्यादा है।