भीमा–कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ समारोह पर हुई हिंसा ने एक बार फिर भारत में दलितों के खिलाफ बढ़ती हिंसा को दर्शाया है।
हाल ही में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, हाल के वर्षों में दलितों के खिलाफ अपराधों की दर में वृद्धि हुई है और अपराधियों को सजा देने की दर में कमी आई है।
वहीं, शहरी क्षेत्रों में दलितों पर होने वाले अत्याचार अब भी बने हुए है। लखनऊ और पटना देश के दो ऐसे बड़े शहर हैं जहां ये अपराध सबसे अधिक है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश और बिहार दो ऐसे राज्य हैं जहां दलितों के खिलाफ सबसे अधिक अपराध दर्ज किये गये हैं। तीसरे स्थान पर राजस्थान का नंबर आता है।
2016 में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के खिलाफ अत्याचार और अपराध के मामलों में बढ़ोतरी हुई। 2016 में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अत्याचार/अपराध की संख्या 5.5% बढ़कर 40,801 हो गई, जबकि 2015 में इसकी संख्या 38,670 थी।
वहीं अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ भी अपराध के मामलों में 4.7% की बढ़ोतरी आई है। साल 2015 (6,276) के मुकाबले यह बढ़कर 6,568 हो गई।
हाल के वर्षों में दलितों के खिलाफ अपराधों में वृद्धि ने इस तरह के अपराधों के लिए सजा दर में तेज गिरावट का पालन किया है, एनसीआरबी आंकड़े बताते हैं। 2010 में 35% से, इस तरह के अपराधों के लिए सजा की दर 2015 में 28% से सात प्रतिशत गिर गई। इसी अवधि में, सभी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) अपराधों के लिए देश में कुल अभियुक्त दर लगभग 6 प्रतिशत अंक बढ़कर 46.9 पर पहुंच गईं %।
दलितों के खिलाफ किए गए अपराधों के लिए सजा दर में गिरावट आने का मुख्य यह है कि अपराधी जुर्माना देकर छुट जाता है। और यही समुदाय के खिलाफ बढ़ते हिंसा में योगदान दे रहे हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानि एनसीआरबी के पिछले पांच साल के आंकड़े बताते हैं कि दलितों के खिलाफ अत्याचार लगातार बढ़ रहे हैं। हालांकि 2012 में इसमें मामूली कमी आयी थी। एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट जो साल 2014 की है, उसमें दलितों के खिलाफ 2013 के मुकाबले अधिक वृद्धि दिखायी गयी है। 2014 में 47,064 अपराध हुए हैं जबकि 2013 में यह आंकड़ा 39,408 था। साल 2012 में दलितों के खिलाफ अपराध के 33,655 मामले सामने आए थे, जबकि इसके एक साल पहले यानि 2011 में हुए 33,719 से थोड़े कम थे। पांच साल पहले 2010 में यह आंकड़ा 33,712 था। अपराधों की गंभीरता को देखें तो इस दौरान हर दिन दो दलितों की हत्या हुई और हर दिन औसतन छह दलित महिलाएं बलात्कार की शिकार हुईं।