देश की आर्थिक विकास दर तीन साल के अपने निचले स्तर पर पहुंच गई है। ताजे आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल–जून 2017) में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में महज 5.7 फीसदी की वृद्धि हुई।
माना जा रहा है कि नोटबंदी के असर को विनिर्माण क्षेत्र की सुस्ती ने और बढ़ा दिया है।
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार,पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही (जनवरी–मार्च) में अर्थव्यवस्था में 6.1 फीसदी की वृद्धि हुई। जबकि साल की शुरुआती तिमाही में संशोधित जीडीपी विकास दर 7.9 फीसदी थी।
विशेषज्ञों की माने तों पिछले साल 8 नवंबर को घोषित नोटबंदी के बाद से अर्थव्यवस्था को लगातार झटके लग रहे हैं। सरकार भी इसे पिछली तिमाही में गिरावट का एक कारक मान चुकी है।
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के मुख्य सांख्यिकीविद टीसीए अनंत ने कहा कि आर्थिक विकास में सुस्ती की मुख्य वजह औद्योगिक गतिविधियों में शिथिलता है। जीएसटी के लागू होने से पहले कंपनियों के भंडारण में बहुत कमी आई थी। उन्होंने उत्पादन कम कर दिया था, जिसका असर जीडीपी विकासदर में दिखा है। अब जीएसटी लागू हो चुका है और त्योहारी मौसम भी आ गया है, जिससे दूसरी तिमाही में स्थिति बेहतर हो सकती है।
अनंत ने कहा कि अप्रैल–जून तिमाही में सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) 5.6 प्रतिशत रहा है, जो पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में 7.6 प्रतिशत था। उन्होंने कहा कि पहली तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र का जीवीए घटकर 1.2 प्रतिशत पर आ गया, जबकि पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में यह 10.7 प्रतिशत रहा था। उन्होंने कहा, विनिर्माण जीवीए में कॉर्पोरेट क्षेत्र की हिस्सेदारी 74 प्रतिशत है।
नोटबंदी के कारण विकास प्रभावित होने से इनकार करते हुए अनंत ने कहा कि वर्ष 2015-16 की दूसरी तिमाही में थोक मूल्य सूचकांक ऋणात्मक था। जबसे यह ऋणात्मक से निकल कर धनात्मक हुआ है, तब से ही विकास दर सुस्त पड़ी है। इसलिए नोटबंदी को इसका कारक नहीं माना जा सकता है।