देश के अधिक जनसंख्या वालों शहरों में हर 4 बच्चों में से 1 बच्चा कुपोषित हैं, जिसका कारण माता की शिक्षा, खानपान का तरीका और सरकारी सुविधाओं के वितरण के साथ परिवार की आर्थिक स्थिति बाल पोषण का निर्धारण करते हैं।
जहां देश में तेजी से शहरीकरण हो रहा है, वहीं 22.3 प्रतिशत पांच वर्ष के बच्चे अविकसित, 21.4 प्रतिशत बच्चें वजन में कम और 13.9 प्रतिशत बच्चे कमजोर हैं। ये आंकडे दस अधिक जनसंख्या वाले शहरों के है। 7 फरवरी 2018 में नन्दी फाउंडेशन द्वारा अर्बन हंगामा (भूख और कुपोषित) सर्वे रिपोर्ट 2014 से ये बात सामने आई है।
सर्वे के अनुसार घर की आर्थिक स्थिति भी बच्चों के कुपोषण को कम ज्यादा कर रहा है। गरीब परिवारों के बच्चों में कुपोषण अधिक देखा गया। इस सर्वे में देश के दस बड़े जनसंख्या वाले शहरों के 0 से 59 महीने आयु वाले बच्चों के पोषण आहार पर किया गया, इसमें 12,000 मातों का इंटरव्यू के साथ 14,000 बच्चों की लम्बाई और वजन को मापा गया।
सर्वे के शहरों में मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद, अहमदाबाद, चेन्नई, कोलकाता, सूरत, पुणे और जयपुर शामिल थे। कुल मिलाकर इन शहरों की भारत की जनसंख्या में 5.3 % और 0-71 महीने आयु वर्ग के बच्चों में 4.1 % की हिस्सेदारी है। इन शहरों में अविकसित और कम वजन का की समस्या तीसरे और चौथे वर्ष के बीच सबसे ज्यादा थी।
शुरु के छह महीने में अकेले स्तनपान से ही बच्चे को पोषण मिलता है। स्तनपान से भोजन खाने वाला समय बहुत संवेदनशील होता है, अगर उस समय सही ध्यान नहीं दिया गया तो बच्चों को स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। 10 भारतीय बच्चों में से सिर्फ 1 बच्चे को पर्याप्त भोजन खिलाया जाता है।
कम या बिना कोई स्कूली शिक्षा ली माताओं के बच्चों में कुपोषण होने का खतरा अधिक होता है। जिन माताओं की शिक्षा पांच या उससे कम थी, उन बच्चों में अविकसित होने का प्रतिशत 35.3 था, वहीं जिन माताओं ने कम से कम 10 साल की शिक्षा ली है, उनके लिए यह प्रतिशत 16.7 था।
वहीं 37.4 % परिवारों का सार्वजनिक वितरण प्रणाली (राशन) तक पहुंच थी, जिसमें सूरत में सबसे कम 10.9 % और कोलकाता में सबसे अधिक 86.6 % रही। 22.5 % बच्चों को ऐसा आहार प्राप्त हुआ, जो स्वस्थ विकास की कम आवश्यकताओं को पूरा करता है। 53.9 % परिवारों ने अपने घरों में पानी पाइप की व्यवस्था की थी।
44.7 % परिवारों में एक महिला सदस्य थी, जिनके पास बचत बैंक खाता था। वहीं एनएफएचएस –4 के मुताबिक, कम से कम 61 % शहरी भारतीय महिलाओं के पास एक बचत खाता था, जो उन्होंने स्वयं इस्तेमाल किया था।