छोड़ आये आपन शहर, छोड़ आये ऊ गली अउर छोड़ आये आपन गाँव आखिर काहे? जेसे आपन पेट पाल सकें!जेसे उनके रहै के ताई घर बनि सकै, शहर की ऊँची-ऊँची इमारत बन सकै, का कबहूँ केहू इनकी जिन्दगी मा झांकके देखे बाय? कैसे बाय इनकै जिन्दगी।
महोबा जिला से बाराबंकी मा आएके काम करै वाली मिथलेश कै कहब बाय की बहुत ही ज्यादा कठिनाई झेल के हम आपन गेदहरा अउर अनाज पानी बचाय पाई थी। हमार गेदहरै पढ़ नाय पउते काहे से जहाँ महतारी बाप जाथे वहीं गेदहरै जाथे। यही से हमरे सबकै गेदहरै अनपढ़ रहि जाथे। प्रमोदा रानी कै कहब बाय की मिटटी खोदै का पराथै लोई बनाय के सांचे मा ढ़ालै का पराथै।राजकुमारी कै कहब बाय की आठ महीना मजदूरी करीथी तब जाय के चार महीना घरे जाय के खाय का मिलाथै। केहू आठ साल केहू दस साल से ईटा पाथके जीवन-यापन कराथे।
चन्द्रभान मिश्रा भट्ठा मालिक कै कहब बाय कि इनके सब ऐसे लेबर कै काम कराथे जैसे ईट पथाई कै बाय या कहूँ सड़क बनत हुवय। लकिन ज्यादातर ईट पथाई कै ही काम कराथिन काहे से ईट पथाई मा ठेका लइके काम कराथिन। तौ पूरा परिवार काम कै लियाथै।
रिपोर्टर-नसरीन
Published on Dec 11, 2017