सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2014-15 में देश में दूध का उत्पादन हमारी कुल कृषि उत्पादन में 20 फीसदी है। दूध उत्पादन में इतना बेहतरीन प्रदर्शन करने के बावजूद भी देश के छोटे दूध उत्पादक संकट में है। बढ़ते दूध उत्पाद बढ़ता पर एकाधिकार बड़ी डेयरी कम्पनी का है, जबकि छोटे किसान और उत्पादक कर्ज में डूबते हुए, इस काम को छोड़ रहे हैं।
सरकार के अनुसार, 2011–12 की तुलना में 2015–16 में दूध उत्पादन के क्षेत्र में 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। फूड साव्रन्टी अलाइन्स की रिपोर्ट के अनुसार बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां बाजार की प्रतिस्पर्धा के कारण शहरों में दूध की कीमत को कम करते हैं। लेकिन इसका खामियाजा छोटे दूध विक्रेता कम कीमत में दूध बेचने के कारण झेलते हैं। इस कारण से छोटे दूध विक्रेता का काम इस क्षेत्र में उद्यमी से बदलकर मजदूर का हो गया है। बड़ी दूध कम्पनियां कम कीमत में दूध बेचकर भी अपनी औसत लागत आराम से निकाल लेते हैं, जबकि छोटे दूध विक्रेता कर्ज में फंस जाते हैं।
इन छोटे दूध विक्रेताओें को सरकार की तरफ से कोई सहयोग नहीं मिलता है। फूड साव्रन्टी अलाइन्स का इस व्यवस्था को सुधारने के लिए कुछ सुझाव हैं कि पशु पालन, डेयरी और डेयरी प्रसंस्करण में प्रत्यक्ष विदेश निवेश को खत्म कर देना चाहिए। हर राज्य सरकार को अपने राज्य में दूध की एक न्यूमतम कीमत निर्धारित कर देनी चाहिए, जिससे कम कीमत कोई छोटे दूध विक्रेता को न दे।
सहकारी समितियां बनाई जाएं, जो इन विक्रेताओं से दूध खरीद सकें। साथ ही राज्य सरकारें दूध और उससे बनने वाले उत्पादों की प्रक्रिया पर निगरानी रखें। उत्तर प्रदेश दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है, पर वह केवल 12 फीसदी दूध का ही उत्पादन करता है। यदि प्रसंस्करण क्षमता में वृद्धि हो तो छोटे डेयरी विक्रेताओं की स्थिति सुधरेगी और भारत श्वेत क्रान्ति में पहले नम्बर पर आते हुए, लाभ हमारे छोटे डेयरी विक्रेताओं को भी लाभ मिलेगा।