नई दिल्ली। माहवारी बंद हो जाने के बाद किसी महिला के साथ ज़बरदस्ती बनाया गया यौन संबंध दंडनीय होगा या नहीं – इस पर बहस छिड़ गई है। दिल्ली हाई कोर्ट ने 31 अक्टूबर को पैंसठ साल की एक महिला के बलात्कार और हत्या के आरोपी अच्छे लाल को बरी कर दिया है।
दिसंबर 2010 में पैंसठ साल की महिला के साथ हुई घटना के मामले में यह फैसला सुनाया गया है। फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश नंदराजोग और मुक्ता गुप्ता ने कहा कि माहवारी बंद हो जाने के बाद बनाया गया यौन संबंध आक्रामक तो माना जा सकता है, लेकिन ज़बरदस्ती बनाया गया संबंध नहीं माना जा सकता।
आरोपी को हत्या का दोषी भी नहीं माना गया है। फैसले में यह भी कहा गया है कि आरोप का इरादा हत्या का नहीं था। हालांकि इससे पहले निचली अदालत ने उनचास साल के अच्छे लाल को दस साल की सज़ा सुनाई थी।
कार्यकर्ता, वकील, नेता – सबने किया फैसले का विरोध
अखिल भारतीय महिला संगठन की अध्यक्ष जगमति सांगवान ने फैसले का विरोध करते हुए कहा कि उम्र के आधार पर ऐसे मामलों में सज़ा तय नहीं होनी चाहिए। अस्सी साल की महिला का भी बलात्कार हो सकता है।
वरिष्ठ वकील और कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर ने आपत्ति जताई है। उन्होंने रजोनिवृत्ति या फिर मासिक धर्म बंद जैसे शब्द के इस्तेमाल पर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि यह एक मेडिकल अवस्था है। इस शब्द का इस्तेमाल घटना से अलग है। पोस्टमार्टम के दौरान महिला की योनि में मिले ज़ख्म और शराब मौजूदगी से साफ है कि उसके साथ ज़बरदस्ती की गई है।